अपने सम्पूर्ण जीवन में ओजस्वी और अनुशासित, मेरी माँ, अपनी उम्र के कारण इस समय एक मरणासन्न रोगियों के अस्पताल में है l श्वास के लिए तड़पती हुई, उनकी गिरती स्थिति उनकी खिड़की के बाहर लुभावना सुन्दर वसंत के दिन के विपरीत थी  l

संसार में समस्त भावनात्मक तैयारियाँ अलविदा के अटल सत्य के लिए हमें समुचित तौर से तैयार नहीं कर सकती l मृत्यु कितना बड़ा अनादर है!  मुझे ख्याल आया l

मैंने खिड़की के बाहर पक्षियों के दाने के बर्तन को देखा l एक छोटी चिड़िया दाना खाने आई l शीघ्र ही एक परिचित वाक्यांश मैंने याद किया : “तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती” (मत्ती 10:29) l यीशु ने यह आज्ञा यहूदिया के एक मिशन पर अपने चेलों को दी, किन्तु यह सिद्धांत आज हम पर भी लागू है l “तुम गौरैयों से बढ़कर हो” (पद.31) l

मेरी माँ द्रवित होकर ऑंखें खोली l अपने बचपन को याद करके अपनी माँ के लिए हॉलैंड में प्रयुक्त प्रेम शब्द द्वारा बताया, “मुती मर गयी!”

“हाँ,” मेरी पत्नी सहमत थी l “वह यीशु के साथ है l” अनिश्चित, माँ ने आगे कहा l “और जोइस और जिम?” उसने अपनी बहन और भाई के विषय पूछी l “हाँ, वे भी यीशु के साथ हैं l “किन्तु हम भी शीघ्र उनके साथ होंगे!”

“इंतज़ार करना कठिन है,” माँ ने धीरे से कहा l