किराने की दूकान जाते समय मेरी सहेली को लगा जैसे सड़क किनारे जाती स्त्री को अपने कार में बैठा लूँ l कार में बैठाने के बाद, उसने जाना कि पैसे नहीं होने के कारण वह गर्म और आर्द्र वातावरण में अनेक मील पैदल चलकर वापस अपने घर जा रही थी l केवल वह पैदल लम्बी यात्रा करके घर ही नहीं जा रही थी किन्तु उसी दिन अनेक घंटे चलकर प्रातः 4 बजे अपने काम पर भी पहुंची थी l

उस स्त्री को अपनी कार में बैठाकर मेरी सहेली ने आज के सन्दर्भ में याकूब के मसीहियों को अपने कार्यों द्वारा अपने विश्वास को प्रगट करने का निर्देश पूरा किया : “विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है” (पद.17) l उसकी चिंता थी कि कलीसिया विधवाओं और अनाथों की देखभाल करें (याकूब 1:27), किन्तु वह यह भी चाहता था कि वे मात्र शब्दों पर नहीं किन्तु विश्ववास पर चलकर प्रेम के कार्य करें l

हम अपने कर्मों से नहीं विश्वास से बचाए गए हैं, किन्तु हम दूसरों से प्रेम करके और उनकी ज़रूरतों को पूरा करके विश्वास को प्रगट करते हैं l इस जीवन में साथ चलते हुए, काश हम भी, मेरी सहेली की तरह, ज़रुरतमंदों के प्रति सजग रहें जिन्हें हमारी मदद चाहिए l