जॉन एफ. बर्न्स विश्व घटनाओं पर 40 वर्षों तक द न्यू यॉर्क टाइम्स के लिए लिखते रहे l 2015 में बर्न्स ने सेवानिवृति पश्चात् एक लेख में, कैंसर पीड़ित घनिष्ठ मित्र और संगी-पत्रकार के शब्द याद किये l “कभी न भूलना,” सहकर्मी ने कहा, “यह महत्वपूर्ण नहीं कि आपने कितनी लम्बी यात्रा की है; आप क्या वापस लाए हैं महत्वपूर्ण है l”
भजन 37 दाऊद की चरवाहा से सैनिक से राजा तक की जीवन यात्रा से “वापस लायी हुई बातों” की सूची हो सकती है l भजन 37 दुष्ट का धर्मी से तुलना, और प्रभु में भरोसा करनेवालों की पुष्टि करनेवाले दोहा श्रृंखला है l
“कुकर्मियों से मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर ! क्योंकि वे घास के समान … मुरझा जाएँगे” (पद.1-2) l
“मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, … चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है” (पद.23-24) l
“मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है” (पद.25) l
परमेश्वर ने हमें, हमारे जीवन के अनुभवों से क्या सिखाया है? हमने कैसे उसकी विश्वासयोग्यता और प्रेम का अनुभव् किया है? किस तरह परमेश्वर के प्रेम ने हमारे जीवनों को गढ़ा है?
महत्वपूर्ण यह नहीं हम जीवन में कितनी दूर चले हैं, किन्तु जो हम वापस लेकर आये हैं l
उम्र के बढ़ने के साथ-साथ परमेश्वर की विश्वासयोग्यता गुणित होती है l