2011 में, टोकियो के उत्तरपूर्व क्षेत्र में 9 माप का भूकंप आया और परिणाम स्वरूप सुनामी ने लगभग 19,000 जानें ले लीं और 2,30,000 घर बर्बाद हो गए l उसके बाद, नोज़ोमी प्रोजेक्ट, जापानी शब्द “आशा” के लिए रखा गया नाम दीर्घकालिक आय, समुदाय, इज्ज़त, और प्रावधान करनेवाले परमेश्वर में आशा के लिए जन्म लिया l
नोज़ोमी स्त्रियाँ घरों के मलबे एवं साज़-सामानों में चीनी मिटटी के टुकड़े खोजकर और छानकर निकालती हैं और उन्हें रगड़कर ज़ेवर बनाने में लगाती हैं l ये ज़ेवर विश्व में बेचे जाते हैं, और स्त्रियों को जीविका देने के साथ-साथ मसीह में उनके विश्वास के प्रतीक भी लोगों में बांटे जाते हैं l
नए नियम के काल में, मिट्टी के साधारण अनिश्चित बरतनों में कीमती वस्तुओं को छिपाने का रिवाज़ था l पौलुस वर्णन करता है कि कैसे सुसमाचार का धन मसीह के अनुयायियों के मानवीय भंगुरता में रखा हुआ है : मिट्टी के बरतनों में (2 कुरिं. 4:7) l वह सलाह देता है कि वास्तव में हमारे जीवन रुपी तुच्छ और कभी-कभी टूट्रे हुए बर्तन भी – हमारी अपूर्णताओं की तुलना में परमेश्वर की सामर्थ्य को प्रगट कर सकते हैं l
जब परमेश्वर हमारे जीवनों के अपूर्ण और टूटे भागों में प्रवेश करता है, उसकी सामर्थ्य की आशा भरी चंगाई अक्सर दूसरों के सामने अधिक प्रत्यक्ष होती है l अवश्य ही, हमारे हृदयों में उसका सुधार कार्य अक्सर दरार के दाग़ छोड़ता है l किन्तु शायद हमारी सीख की ये रेखाएं हमारे व्यक्तित्वों में उकेरी हुई बातें ही हैं जो दूसरों में उसके चरित्र को और प्रगट करती हैं l
टूटापन पूर्णता की ओर ले जाता है l