परमेश्वर ने हममें से हर एक को मूल रूप में बनाया है l कोई भी पुरुष अथवा महिला खुद के द्वारा बनाए नहीं गए l कोई भी स्वयं से गुणवान, जानकार, या बुद्धिमान नहीं बनता l परमेश्वर ने ही हममें से हर एक को बनाया l उसने हमारे विषय सोचा और हमें अपने असीम प्रेम के कारण बनाया l
परमेश्वर ने आपका शरीर, दिमाग, और आत्मा बनाया l और वह अभी भी आप में अपना कार्य कर रहा है l वह अभी भी आपको बना रहा है l हमारी परिपक्वता ही उसका एकमात्र उद्देश्य है : “जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किये हैं, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फ़िलि. 1:6) l परमेश्वर आपको और सामर्थी, ताकतवर, पवित्र, और शांतिमय, और प्रेमी, कम स्वार्थी अर्थात् जैसा आप बनना चाहते थे वैसा ही बना रहा है l
“[परमेश्वर की] सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है” (भजन 100:5) l परमेश्वर ने हमेशा आपसे प्रेम किया है (“हमेशा” दोनों ओर), और वह आपके साथ अंत तक विश्वासयोग्य रहेगा l
आपको ऐसा प्रेम मिला है जो सर्वदा तक रहेगा और एक परमेश्वर जो आपको कभी नहीं छोड़ेगा l यही आनंद करने का अच्छा कारण है और “जयजयकार के साथ उसके सम्मुख [आने का कारण भी]!” (पद 2) l
यदि आप गा नहीं सकते, केवल उसे ऊंची आवाज़ में पुकारें : “यहोवा का जयजयकार करो” (पद.1) l
विश्वास के विकसित होने से आत्मिक बढ़ोत्तरी होती है l