जब मैं एक सहेली के संग रात्री भोजन कर रही थी, उसने बताया कि वह परिवार के एक ख़ास सदस्य से ऊब चुकी है l किन्तु वह अनदेखा करने अथवा उपहास करने की उसकी कष्टकर आदत के विषय उससे कुछ कहने में हिचकिचाती थी l समस्या के विषय जब उसने उसका सामना करना चाहा, उसने निन्दापूर्ण आलोचना की l वह उससे अत्यधिक क्रोधित हुई l दोनों पक्षों के एक दूसरे के विरुद्ध बोलने से, पारिवारिक फूट बढ़ गयी l

मैं भी ऐसी हूँ, क्योंकि मैं भी क्रोध से ऐसे ही पेश आती हूँ l मैं भी लोगों का सामना करने में कठिनाई महसूस करती हूँ l यदि कोई मित्र या परिवार का कोई सदस्य कुछ गन्दी बातें बोलता है, मैं अक्सर अपनी भावनाओं को दबा देती हूँ जब तक कि वह व्यक्ति या कोई और आकर कुछ और गन्दी बातें कहता या बोलता नहीं है l थोड़े समय बाद मैं, अधिक क्रोधित हो जाती हूँ l

इसलिए इफिसियों 4:26 में प्रेरित पौलुस ने कहा, “सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे l” अनसुलझी बातों के लिए समय सीमा निर्धारित करने पर क्रोध नियंत्रित रहता है l किसी गलती को बढ़ाने की अपेक्षा, जो कड़वाहट का घर है, हम परमेश्वर के “प्रेम में सच्चाई [बोलें]” (इफि.4:15) l

क्या किसी के साथ समस्या है? उसे पकड़े रहने की अपेक्षा परमेश्वर को प्रथम रखें l वह क्षमा और प्रेम की सामर्थ्य से क्रोध की आग बुझा सकता है l