रिफ्यूज रबिन्द्रनाथ नाम का एक व्यक्ति श्रीलंका में 10 वर्षों से अधिक से युवा कार्यकर्त्ता रहा है l वह अक्सर युवाओं के साथ देर रात को बातचीत करता है-खेलता है, उनकी सुनता है, सलाह देता है और सिखाता है, जो उसे पसंद है, किन्तु भरोसेमंद विद्यार्थीयों के कभी-कभी विश्वास से फिर जाने से निराशा मिलती है l वह कभी-कभी लूका 5 में शमौन पतरस की तरह कुछ-कुछ अनुभव करता है l
शमौन पूरी रात मेहनत करके भी मछली नहीं पकड़ा (पद.5) l वह हताश और थका हुआ था l किन्तु यीशु के कहने पर कि, “गहरे में ले चल, और … अपने जाल डालो” (पद.4), शमौन का उत्तर था, “तौभी तेरे कहने से जाल डालूँगा” (पद.5) l
शमौन का आज्ञा मानना अद्भुत था l अनुभवी मछुआरे के रूप में, वह जानता था कि सूर्य निकलने के बाद मछलियाँ गहरे में चली जाती हैं, और उनके जाल गहराई में नहीं जा सकते थे l
यीशु पर भरोसा करने की उसकी इच्छा रंग लायी l शमौन को ढेर सारी मछलियाँ मिलीं और उसने जाना कि यीशु कौन है l वह यीशु को “स्वामी” (पद.5) से “प्रभु” कह पाया (पद.8) l वास्तव में, “सुनना” अक्सर हमें प्रगट रूप से परमेश्वर के कार्य देखने देता है और उसके निकट लाता है l
शायद परमेश्वर आपसे पुनः “अपने जाल डालने को कह रहा है l” हम शमौन की तरह प्रभु को उत्तर दें : “तौभी तेरे कहने से जाल डालूँगा l”
जब हम परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं वह हमारी अगुवाई उन बातों में भी करता है
जिन्हें हम नहीं जानते और हमें अपने निकट लाता है l