बत्तियाँ बंद होने के बाद जैसे ही हमने अपोलो 13, देखने की तैयारी की, मेरी सहेली ने  सांस रोककर कहा, “शर्मनाक, वे सब मर गए l” मैं भय के साथ 1970 के अन्तरिक्ष यान के विषय फिल्म देख रही थी, और त्रासदी के घटित होने का इंतज़ार कर रही थी, और अन्त के निकट मुझे महसूस हुआ कि मुझे धोखा मिला हो l इस सत्य कहानी का अंत मैं नहीं जानती थी या मुझे याद नहीं था-कि यद्यपि सभी अन्तरिक्ष यात्री कठिनाई सहे थे, पर  वे जीवित घर पहुंचे थे l

मसीह में, हम कहानी का अंत जान सकते हैं-कि हम भी जीवित घर पहुंचेंगे l इससे मेरा मतलब है कि हम अपने स्वर्गिक पिता के साथ सर्वदा के लिए रहेंगे, जैसा हम प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में देखते हैं l प्रभु “[नया] आकाश और नयी पृथ्वी” बनाएगा जैसे कि वह सब कुछ नया कर देता है (21:1, 5) l इस नए नगर में, प्रभु परमेश्वर अपने लोगों को बिना डर और बिना अन्धकार के अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित करेगा l हम कहानी का अंत जानकार आशा से भर जाते हैं l

इससे क्या अंतर होता है? यह अति दुःख के समय को बदल सकता है, जैसे जब लोग अपने प्रिय को खो देते हैं अथवा स्वयं की मृत्यु l यद्यपि हम मृत्यु के विचार से घबराते हैं, फिर भी अनंत की प्रतिज्ञा के आनंद को गले लगा सकते हैं l हम उस नगर का इंतज़ार कर रहे हैं जहाँ श्राप न होगा, जहाँ हम सर्वदा परमेश्वर के उजियाले में निवास करेंगे (22:5) l