हाल ही में हमने अपनी बाईस महीने की नातिन, मोरिया को उसके बड़े भाइयों के बिना रात भर के लिए अपने घर ले गए l हमनें अधिक प्रेम के साथ उसका ध्यान दिया, और हम उसकी इच्छा पूरी करने में आनंदित हुए l अगले दिन उसको वापस घर पहुंचाने के बाद, हम अलविदा कहकर घर के बाहर निकलने लगे l ऐसा करते समय, मोरिया ने चुपचाप अपना बैग उठाकर(जो अभी भी दरवाजे के निकट बैठी हुयी थी) हमारे पीछे चलने लगी l

वह तस्वीर मेरी यादों में बैठ गयी : मोरिया अपनी चड्डी में और दो अलग-अलग सैंडल पहनी हुयी पुनः नाना-नानी के साथ जाने को तैयार थी l मैं इसके विषय सोचकर मुस्कराती हूँ l वह मेरे संग जाने को उत्सुक, और अधिक व्यक्तिगत ध्यान पाने के लिए तैयार थी l

यद्यपि हमारी नातिन अभी बता नहीं पाती है, वह प्रेम और उसका महत्व अनुभव करती है l एक छोटे रूप से, मोरिया के लिए हमारा प्रेम हमारे लिए अर्थात् उसकी संतान के लिए परमेश्वर के प्रेम की तस्वीर है l “देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की संतान कहलाएं; और हम हैं भी” (1 यूहन्ना 3:1) l

हम यीशु पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करके, उसकी संतान बन जाते हैं और हमारे लिए उसकी क्रूसित मृत्यु द्वारा उसके उदार प्रेम को समझने लगते हैं (पद.16) l हमारी इच्छा अपने वचन और कार्यों द्वारा उसको प्रसन्न करने(पद.6)-और उसको प्रेम करने और उसके साथ समय बिताने की होती है l