अक्टूबर 1915 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑस्वाल्ड चैम्बर्स ब्रिटिश राष्ट्रमंडल सैनिकों के लिए, YMCA की ओर से पादरी की सेवा करने मिस्र में काहिरा के निकट एक सेना प्रशिक्षण शिविर, जीटोन  शिविर पहुंचे l चैम्बर्स के द्वारा एक सप्ताह की रात्री धार्मिक सेवा की घोषणा पर, 400 लोग उस बड़े YMCA  झोपड़े में उसका उपदेश सुनने आ गए जिसका शीर्षक था, “प्रार्थना की अच्छाई क्या है?” बाद में, युद्ध के मध्य परमेश्वर को ढूँढ़ने वाले लोगों से व्यक्तिगत रूप से बातें करते हुए, ऑस्वाल्ड ने अक्सर लूका 11:13 का सन्दर्भ दिया, “अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा” (लूका 11:13) l

परमेश्वर के पुत्र, यीशु के द्वारा मुफ्त उपहार क्षमा, आशा, और पवित्र आत्मा द्वारा हमारे जीवनों में उसकी जीवित उपस्थिति है l “क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो कोई ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा” (पद.10) l

नवम्बर 15, 1917 को अचानक अपेंडिक्स(बड़ी आंत का एक अतिरिक्त भाग) के फूटने से ऑस्वाल्ड चैम्बर्स की मृत्यु हो गयी l ऑस्वाल्ड की सेवा के परिणामस्वरुप विश्वास करनेवाला एक सैनिक संगमरमर पत्थर की बनी खुली बाइबिल की एक प्रतिरूप पर लूका 11:13 खुदवाकर उसके कब्र के निकट रख दिया : “स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा!”

प्रतिदिन परमेश्वर का यह अद्भुत उपहार हमारे लिए उपलब्ध है l