अपने समुदाय में रसोइया का कार्य करनेवाला, 17वीं शताब्दी का मठवासी/साधु ब्रदर लॉरेन्स, दिन का काम आरंभ करने से पूर्व, प्रार्थना करता था, “हे मेरे परमेश्वर … आपकी उपस्थिति में रहने के लिए मुझे अनुग्रह दीजिए l मेरे कार्य में मेरी मदद कीजिए l मेरे सम्पूर्ण मोह को अपना बना लीजिए l” कार्य करते हुए, वह परमेश्वर से निरंतर बातें करता था, उसके मार्गदर्शन पर ध्यान देते हुए अपना काम उसको समर्पित करता था l वह अपनी व्यस्तता में भी, बीच के संतुलित शांत समय में उससे अनुग्रह माँगता था l चाहे कुछ भी होता रहे, उसने अपने सृष्टिकर्ता के प्रेम को ढूंढा और महसूस किया l

भजन 89 के अनुसार, समुद्र पर राज्य करनेवाले और स्वर्गदूतों की सेना द्वारा उपासना प्राप्त करनेवाले सबके सृष्टिकर्ता के प्रति अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करना ही सटीक प्रतिउत्तर होगा l परमेश्वर कौन है, उसकी खूबसूरती समझने के बाद हम “आनंद की ललकार को” हर समय और हर जगह “दिन भर” सुनते हैं l (पद. 15-16) l

चाहे हम किसी दूकान में अथवा एअरपोर्ट/बस की पंक्ति में खड़े हों, अथवा अपने फ़ोन होल्ड किये हों, हमारे जीवन ऐसे क्षणों से भरे हैं, जब हम परेशान भी हो सकते थे l अथवा हम इन क्षणों को “[उसके] प्रकाश में” चलनेवाले क्षण बना सकते हैं (पद.15) l

हमारे जीवनों के “बर्बाद” किये हुए क्षण, जब हम इंतज़ार करते हैं, बीमार होते हैं अथवा विचारते हैं कि क्या करें, उसकी उपस्थिति के प्रकाश में रहने के पल हो सकते हैं l