मारिलिन कई हफ़्तों तक बीमार रही थी, और अनेक लोगों ने उसे इस कठिन समय में उत्साहित किया था l मैं उनकी नेकी का बदला कैसे दूँगी?  उसकी चिंता थी l तब एक दिन उसने एक लिखित प्रार्थना पढ़ी : “प्रार्थना करें कि [दूसरे] दीनता को बढ़ाएं, केवल सेवा करने के लिए नहीं, किन्तु सेवा लेने के लिए भी l” मारिलिन ने तुरंत महसूस किया कि बराबर करने की ज़रूरत नहीं, किन्तु केवल धन्यवादी होकर दूसरों को सेवा करने का आनंद अनुभव करने दें l

फिलिप्पिय्यों 4 में, पौलुस ने “[उसके] क्लेश में … सहभागी” होनेवाले सभी को धन्यवाद दिया (पद.14) l वह सुसमाचार प्रचार करते समय और सिखाते समय लोगों की सहायता पर निर्भर था l वह समझ गया कि ज़रूरत के समय मिला उपहार केवल परमेश्वर के प्रेमी लोगों के प्रेम का प्रसार था : “[तुम्हारा उपहार] तो सुखदायक सुगंध, ग्रहण करने योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है” (पद.18) l

प्राप्त करनेवाला बनना सरल नहीं है-विशेषकर यदि आमतौर पर आप दूसरों को मदद करने में प्रथम रहे हैं l किन्तु दीनता से, हमारी ज़रूरत के समय हम परमेश्वर को अनेक माध्यमों से हमारी देखभाल करने की अनुमति दें l

पौलुस ने लिखा, “मेरा परमेश्वर … तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा” (पद.19) l यह कुछ ऐसा था जो उसने क्लेश से पूर्ण जीवन में सीखा था l परमेश्वर विश्वासयोग्य है और उसका श्रोत असीमित है l