हमारे पीछे के आँगन में मकोय(Cherry)का एक पुराना पेड़ है जिसने अच्छे दिन देखे थे और अब मर रहा था, इसलिए मैंने पेड़ों में नयी जान डालनेवाले विशेषज्ञ को बुलाया l उसने जांच करके बताया कि वह पेड़ “अत्यंत थकान” में है और उसे तुरंत देख-रेख चाहिए l “धीरज रखो,” मेरी पत्नी, करोलिन जाते हुए उस पेड़ से बुदबुदाई l वह एक कठिन सप्ताह था l

वास्तव में, हम सब के पास चिंता भरे सप्ताह होते हैं-जिसमें हम अपनी संस्कृति को उद्देश्य से दूर जाते हुए अथवा अपने बच्चों के विषय, हमारे विवाह, व्यवसाय, धन, व्यक्तिगत सेहत और सुख के विषय चिंतित होते हैं l फिर भी, यीशु ने हमें भरोसा दिया है कि अशांत करनेवाली परिस्थितियों के बावजूद हम शांति से रह सकते हैं l उसने कहा, “मैं … अपनी शांति तुम्हें देता हूँ” (यूहन्ना 14:27) l

यीशु के दिन संकट और अव्यवस्था से भरे थे : उसके शत्रुओं ने उसे घेरा और उसके  परिवार और मित्रों ने उसे गलत समझा l अक्सर उसके पास सिर रखने को जगह न थी l इसके बावजूद उसके अंदाज में चिंता अथवा अप्रसन्नता के संकेत नहीं थे l उसके अन्दर आन्तरिक स्थिरता और शांति थी l अतीत, वर्तमान, और भविष्य के विषय-उसने हमें इसी प्रकार की शांति दी है  l उसने अपनी  शांति प्रगट की है l

किसी भी स्थिति में, चाहे वह कितनी भी खौफ़नाक अथवा मामूली हो, हम प्रार्थना में यीशु की ओर मुड़ सकते हैं l हम उसकी उपस्थिति में अपनी चिंता और भय उसको बता सकते हैं l और, पौलुस हमें भरोसा देता है कि परमेश्वर की शांति हमारे “हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी” (फ़िलि. 4:7) l “उस प्रकार का कोई सप्ताह” होने के बावजूद, हमेंउसकी  शांति मिल सकती है l