जब हमारे बच्चे छोटे थे, वे पड़ोस के चिनार के पेड़ के गिरते बीजों को पकड़ना पसंद करते थे l प्रत्येक बीज हेलीकॉप्टर के पंखों की तरह उड़ता हुआ नीचे गिरता था l इन बीजों का उद्देश्य उड़ना नहीं था, किन्तु भूमि पर गिरकर पेड़ के रूप में उगना था l

यीशु ने क्रूसित होने से पहले, अपने चेलों से कहा, “वह समय आ गया है कि मनुष्य के पुत्र की महिमा हो … जब तक गेहूँ का एक दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है” (यूहन्ना 12:23-24) l

जब यीशु के चेले चाहते थे कि वह मसीह के रूप में सम्मानित किया जाए, उसने अपना जीवन बलिदान किया ताकि उसमें विश्वास करने के द्वारा हम क्षमा किए जाएँ और रूपांतरित किये जाएँ l यीशु के अनुयायी होकर, हम उसकी आवाज़ सुनते हैं, “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह अनंत जीवन के लिए उस की रक्षा करेगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ में हूँ, वहाँ मेरा सेवक भी होगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा” (पद.25-26) l

चिनार पेड़ के बीज, उद्धारकर्ता, यीशु के आश्चर्यकर्म की ओर इशारा कर सकते हैं, जिसने मृत्यु सही कि हम उसके लिए जी सकें l