जीवन की परेशानियाँ हमें चिड़चिड़ा और तुनक मिजाज बना देती है, किन्तु हमें ऐसे बुरे आचरण से बार-बार होनेवाले प्रभाव से बचना चाहिए, क्योंकि ये हमारे प्रेमियों के हृदयों के उत्साह को कम करके हमारे चारों ओर दुःख फैलाते हैं l अगर हम दूसरों के प्रति मनोहर नहीं हैं हमनें अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया l
नया नियम उस सद्गुण के लिए नम्रता शब्द उपयोग करता है जो हमारे मनमुटाव को ठीक कर सकता है, अर्थात् जो एक दयालू और अनुग्रहकारी हृदय को दर्शाता है l इफिसियों 4:2 हमें याद दिलाता है , “सारी दीनता और नम्रता सहित, … एक दूसरे की सह लो l”
नम्रता दूसरों के प्रति क्रोध प्रगट किये बगैर अपनी सीमाओं और पीड़ाओं को स्वीकार करने की इच्छा है l यह सबसे छोटी सेवा के लिए धन्यवादित होना है, और जिन्होंने हमारी अच्छी तरह सेवा नहीं की उनको सहन करना है l यह तंग करनेवालों को विशेषकर शोर मचानेवालों, उपद्रवी बच्चों को सहन करने की शक्ति देती है; क्योंकि बच्चों के प्रति दयालुता दिखाना भले और नम्र लोगों के जीवनों का उत्तम चिन्ह है l यह उत्तेजना का सामना नम्रता से करता है l यह शांत भी रह सकता है l शांति के लिए, कठोर शब्दों का उत्तर अचल शांति से देना सर्वोत्तम है l
यीशु “नम्र और मन में दीन है” (मत्ती 11:29) l यदि हम उससे कहते हैं, वह ठीक समय में हमें अपने स्वरुप में बदल देगा l स्कॉटलैंड का लेखक जॉर्ज मैकडॉनल्ड कहता है, हमने दूसरों को परेशान किया, जिससे दूसरों को दुःख हुआ l परमेश्वर हमारे अन्दर की ऐसी आवाज़ नहीं सुनना चाहता है . . . यीशु ऐसे पापों से और सभी पापों से हमें छुड़ाने आया l”
परमेश्वर के प्रति नम्रता हमें दूसरों के प्रति नम्र बनाएगा l