एक साल क्रिसमस के दिनों में मुझे एक ऐसे जगह पर काम करने जाना पड़ा जहां मेरे मित्र मुझे ढूंढ न सके l कार्य-स्थल से अपने कमरे पर लौटते समय, मैंने काला सागर की सर्द हवा का सामना किया l
अपने कमरे में पहुँचकर, मैं बहुत चकित हुआ l मेरे कला प्रेमी मित्र ने अपने नए प्रोजेक्ट, उन्नीस इंच लम्बी मिट्टी की क्रिसमस ट्री को बना लिया था l उसमें लगी रंगीन बत्तियों से हमारा अँधेरा कमरा जगमगा रहा था l उसे देखकर मैंने महसूस किया, काश आज मैं घर में होता!
अपने भाई एसाव से भागकर याकूब भी अपने को एक अपरिचित और अकेला स्थान में पाया l कठोर भूमि पर सोते हुए, सपने में उसकी मुलाकात परमेश्वर से हुई l और परमेश्वर ने उसे एक घर देने की प्रतिज्ञा देते हुए कहा, “जिस भूमि पर तू लेटा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूँगा . . . तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएँगे”(उत्प.28:13-14)l
निःसंदेह, याकूब से ही प्रतिज्ञात मुक्तिदाता आने वाला था, जो हमें अपने निकट लाने के लिए अपने घर को छोड़ा l यीशु ने अपने चेलों से कहा, ”मैं . . . फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहां मैं रहूँ वहां तुम भी रहो” (यूहन्ना 14:3) l
मैं दिसम्बर की उस रात के अँधेरे में अपने कमरे में बैठकर उस क्रिसमस ट्री को देख रहा था l शायद निःसंदेह ही मैंने उस ज्योति के विषय सोचा जो हमें घर का मार्ग दिखाने के लिए पृथ्वी पर आयी थी l
नक्शा पर कोई स्थान घर नहीं है, क्योंकि घर अपना होता है l
परमेश्वर वह वास्तविक स्थान हमें देता है l