जब मैं यीशु में नयी विश्वासिनी थी, एक आत्मिक सलाहकार ने मुझ से धन्यवादी दैनिकी रखने को कहा l एक छोटा नोटबुक जिसे मैं अपने साथ हर जगह ले जाती थी l कभी-कभी मैं धन्यवाद की बात को तुरंत लिख लेती थी l अन्य समयों में, मैं सप्ताह के अंत में मनन के समय के बाद उसे लिखती थी l

प्रशंसा की बातों पर ध्यान देना एक अच्छी बात है, जो मैं अपने जीवन में फिर से स्थापित करना चाहती हूँ l यह मुझे परमेश्वर की उपस्थिति और उसके प्रावधान और देखभाल के लिए सचेत रहने में मदद करेगा l

सबसे छोटे भजन, भजन 117 में, लेखक सभी को प्रभु की प्रशंसा करने के लिए उत्साहित करता है क्योंकि “उसकी करुणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है” (पद.2) l

इसके विषय सोचे : प्रभु ने आपसे आज, इस सप्ताह, इस महीना, और इस साल किस तरह प्रेम किया है? असाथारण की आशा न करें l उसका प्रेम साधारण, जीवन की दैनिक स्थितियों में दिखाई देता है l उसके बाद अनुभव करें कि आपके परिवार के प्रति, आपकी कलीसिया, और दूसरों के प्रति उसका प्रेम कैसे प्रगट हुआ है l हम सब के प्रति उसके प्रेम के विस्तार में डूब जाएं l

भजन यह भी कहता है कि “यहोवा की सच्चाई सदा की है”(पद.2 में ज़ोर दिया गया है) l अर्थात् वह हमेशा हमसे प्रेम करता रहेगा! इसलिए हम भविष्य में भी अनेक बातों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते रहेंगे l उसके प्रिय बच्चों की तरह परमेश्वर की स्तुति करना और धन्यवाद देना ही हमारे जीवन का चरित्र हो!