मैंने अपनी कार में किराने का सामन लादकर पार्किंग स्थल से निकला ही था कि अचानक एक व्यक्ति सड़क के किनारे से मेरे सामने आ पहुंचा l मैंने कार के ब्रेक्स लगाए और उसको बचा लिया l वह चौंककर मुझे घूरने लगा l उस क्षण, मैं अपनी आँखों को घुमाकर निराशा से उसे देख सकता था अथवा मुस्कराते हुए उसे क्षमा कर सकता था l मैं मुस्करा दिया l

उसके चेहरे पर शांति और उसके होठों पर धन्यवाद था l

नीतिवचन 15:13 कहता है, “मन आनंदित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दुःख से आत्मा निराश होती है l” क्या लेखक जीवन की हरेक बाधा, निराशा, और असुविधा में हमारे चेहरे पर मुस्कराहट चाहता है? शायद नहीं! वास्तविक शोक, निराशा, और अन्याय के प्रति क्रोध का समय होता है l किन्तु हमारे दैनिक क्षणों में, मुस्कराहट से आशा उत्पन्न होती है और आगे बढ़ने के लिए अनुग्रह मिलता है l

शायद नीतिवचन का इशारा है कि मुस्कराहट हमारे भीतरी व्यक्तित्व की स्थिति का स्वाभाविक परिणाम होता है l एक “आनंदित मन” शांत, संतुष्ट, और परमेश्वर से सर्वोत्तम पाने के प्रति समर्पित होता है l पूरी तौर से आनंदित हृदय द्वारा, हम चकित करनेवाली परिस्थितियों में  भी वास्तविक मुस्कराहट से प्रतिउत्तर देकर, दूसरों को परमेश्वर के साथ आशा और शांति प्राप्त करने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं l