दशरथ मांझी की कहानी हमें प्रेरणा देती है। उनकी पत्नी की मृत्यु इसलिए हो गई, क्योंकि वह उसे तत्काल चिकित्सा के लिए अस्पताल न लेजा सके, मांझी ने वह किया जो असंभव था। 22 वर्ष लगा कर उन्होंने पहाड़ में बड़ी जगह बनाई ताकि गांववासी स्थानीय अस्पताल पहुंचकर आवश्यक चिकित्सा और देखभाल पा सकें। भारत सरकार ने उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें सम्मानित किया।

देश निकाले से लौटे जरूब्बाबेल को मंदिर का पुनर्निर्माण असंभव लगा होगा। लोग निराश थे, दुश्मनों के विरोध का सामना कर रहे थे, और उनके पास संसाधन या एक बड़ी सेना न थी। परमेश्वर ने जरूब्बाबेल के पास जकर्याह को भेजकर उसे याद दिलाया कि यह कार्य सेना, मानव बल या मानव निर्मित संसाधनों की बजाय उससे होगा जो इनसे अधिक बलवान है। यह आत्मा के बल से होगा (जकर्याह 4:6)। जरूब्बाबेल ने विश्वास किया कि मंदिर के पुनर्निर्माण और समुदाय को पुनःस्थापित करने के रास्ते में किसी भी कठिनाई के पहाड़ को परमेश्वर मैदान कर देंगे।

हमारे सामने “पहाड़” हो तो हम क्या करते हैं? इसके दो विकल्प होते हैं: अपने पर भरोसा रखें या आत्मा के बल पर। जब हम उनके बल पर भरोसा करेंगे, तो वह या तो पहाड़ को मैदान बना देंगें या हमें उस पर चढने का बल और सहनशीलता देंगे।