मेरी बेटी और मैं “पिन्चर्स” खेल खेलते हैं। ऊपर चड़ते हुए मैं उसका पीछा करता हूँ और उसकी चुटकी काटता हूँ। मैं तभी पिंच कर सकता हूँ जब वह सीढ़ियों पर हो। ऊपर पहुंचते ही वह सुरक्षित होगी। जब वह खेलने के मूड में न हो और मैं उसे सीढ़ियों में पाऊँ तो कहती है, “पिंचर्स नहीं!” मैं कहता हूँ, “पिंचर्स नहीं! प्रॉमिस।”

ऐसी प्रतिज्ञा साधारण बात है। लेकिन जब मैंने जो कहा वह करता हूँ, तो उसे मेरे चरित्र की पहचान होती है। कथनी अनुसार करनी के मेरे गुण का उसे अनुभव और भरोसा होता है कि मेरा कहना काफ़ी है, कि वह मुझ पर भरोसा कर सकती है। यह एक छोटी बात है। लेकिन प्रतिज्ञाएं-या मुझे कहना चाहिए कि, उन्हें निभाना-संबंधों को जोड़ने की गोंद होती हैं। ये प्रेम और विश्वास की नींव बनाती हैं।

पतरस  ने लिखा कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं हमें “ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी” बनाती हैं। (2 पतरस 1:4) परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास कर, हमारे प्रति उनके ह्रदय को हम समझ पाते हैं। उनके वचन पर हमारा निर्भर होना उन्हें अपनी विश्वासयोगिता सिद्ध करने का अवसर देता है। मैं धन्यवादी हूँ कि बाइबिल उनकी प्रतिज्ञाओं से भरी है, जो याद दिलाती हैं कि “उसकी दया अमर है…”(विलापगीत 3:22-23)।