हमारी कलीसिया सिंगापुर के द्वीप में स्थित एक खुले मैदान में लगती है। जहाँ मेरे देश में कार्यरत कुछ विदेशियों ने , हर रविवार पिकनिक के लिए एकत्रित होना आरम्भ कर दिया।
इस बात से कलीसिया के सदस्यों में भिन्न प्रतिक्रियाएं उत्पन्न हो गईं। कुछ लोग उनके द्वारा पीछे छोड़े जाने वाले गंदगी की बात पर कुडकुडा रहे थे। अन्य इसे परदेसियों को आतिथ्य प्रदान करने का एक दिव्य अवसर मान रहे थे-बिना कलीसिया के मैदान को छोड़े।
नई भूमि में बसने पर दूसरों के साथ ताल-मेल बैठाने में इस्राएलियों को भी समस्याएं आई होंगी। परमेश्वर ने उन्हें विदेशियों के साथ वैसा ही व्यवहार करने की स्पष्ट आज्ञा दी जैसा वे अपने लोगों के साथ करते थे। और वैसा ही प्रेम करने की आज्ञा दी जैसा वे स्वयं से करते थे (लैव्यवस्था 19:34)। उनकी कई व्यवस्थाओं में विदेशियों का विशेष उल्लेख था। उनके साथ दुर्व्यवहार या उनका दमन नहीं किया जाना चाहिए, उनसे प्रेम करना और उनकी मदद करना (निर्गमन 23:9; व्यवस्थाविवरण 10:19)। सदियों बाद, यीशु हमें ऐसा ही करने का आदेश देंगे: अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो। (मरकुस 12:31)
हमें याद रखन चाहिए कि हम लोग भी इस पृथ्वी पर प्रवासी हैं। तो भी हमसे परमेश्वर के लोगों के रूप में प्रेम और व्यवहार किया गया है।
हमारे प्रति परमेश्वर के प्रेम को अपनाना दूसरों को प्रेम करने की कुंजी है।