झगड़ा करके एक मेरे बच्चे शिकायत करने मेरे पास आए, मैंने दोनों का पक्ष बारी बारी से सुना। क्योंकि दोष दोनों का था, तो चर्चा के बाद मैंने दोनों ही से पूछा, कि उनके अनुसार दूसरे के लिए उचित, न्यायसंगत दंड क्या होना चाहिए। उनका सुझाव दूसरे को कठोर दंड देने का था। पर बजाय इसके जब उनको मैंने वही दण्ड दिया, जो उन्होंने अपने भाई के लिए चुना था तो वे आश्चर्यचकित थे। वही दंड जो उन्हें दूसरे के लिए उचित लग रहा था, जब उन पर आया तो उन्हें “अनुचित” लगने लगा।
बच्चों ने जिस “दया रहित निर्णय” को चुना था उसके विरुद्ध परमेश्वर हमें सावधान करते हैं (याकूब 2:13)। याकूब कहते हैं, कि परमेश्वर की इच्छा है कि धनवान या स्वयं के लिए भी पक्षपात न दिखाकर हम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखें (8)। दूसरों का स्वार्थ अनुसार उपयोग करने या जो हमें लाभ न दें उनकी उपेक्षा करने के बजाय, याकूब हमें उनके समान व्यवहार करने का निर्देश देते हैं जो जानते हैं कि हमें कितना दिया और माफ किया गया है-और दूसरों पर भी वही दया दिखाएं।
परमेश्वर ने हमें उदारता से दया प्रदान की है। अपने व्यवहार में, हम उस दया को याद रखें जो और दूसरों पर भी इसे दिखाएं।
परमेश्वर की दया हमें दयालु होने के लिए बाध्य करती है।