विदा लेते समय मेरी पोती और मेरा नियम है, हम गले मिलकर 20 सेकिंड के लिए दहाड़ मार कर रोते हैं और अलग होने पर कहते हैं “फिर मिलेंगे” और लौट जाते हैं। हम सदा यह आशा करते हैं कि हम एक दूसरे से फिर मिलेंगे-जल्द ही।
परंतु कभी-कभी अपने प्यारों से बिछुड़ना कठिन होता है। पौलुस के इफिसुस के प्राचीनों से विदा लेने पर वे उसके गले लिपट कर उसे चूमने लगे…वे उस बात का शोक करते थे, जो उस ने कही थी, कि तुम मेरा मुंह फिर न देखोगे (प्रेरितों के काम 20:37–38)।
तथापि गहरा दुःख तब होता है जब हम मौत से अलग हो जाते हैं और इस जीवन में आखिरी बार अलविदा कहते हैं। यह कल्पना से भी बाहर है। हम शोक मनाते और रोते हैं। उन्हें दोबारा गले न लगा पाने के दिल तोड़ने वाले दुःख को हम झेलेंगे?
फिर भी…हम उन लोगों के समान शोक नहीं करते हैं जिनके पास कोई आशा नहीं है। पौलुस उनके लिए भविष्य में पुनर्मिलन के बारे में लिखते है जो “विश्वास करते हैं कि यीशु मरा और फिर जी भी उठा..और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। (1 थिस्सलुनीकियों 4:13-18)। क्या पुनर्मिलन है! और हम सर्वदा यीशु के साथ रहेगें-यह एक शाश्वत आशा है।
मृत्यु पर, परमेश्वर के लोग "अलविदा" नहीं कहते परन्तु यह कि "हम आपसे फिर मिलेंगे।"