आह-पाई सुबह तड़के उठ जाती है। बाकि लोग भी जल्दी उठकर रबड़ के बागानों में जाएँगे। रबड़ की फ़सल चीन के हांगझुआंग गांव-वासियों की आय का मुख्य स्रोत है। अधिक रबर इकट्ठा करने लिए सुबह से पेड़ों से क्षीर निकाला जाता है। आह-पाई भी उनमें शामिल होगी, परंतु पहले वह परमेश्वर के साथ समय बिताएगी।
आह-पाई के पिता, पति, और पुत्र का निधन हो चुका है। वह अपनी बुजुर्ग मां और दो पोतों को पालने के लिए मेहनत करती है। उसकी कहानी मुझे बाइबिल में एक विधवा की याद दिलाती है। जिसका पति कर्जा छोड़ कर मर गया (2राजा 4:1)। संकट में मदद पाने के लिए वह परमेश्वर के दास एलीशा के पास गई। उसे विश्वास था कि उसकी स्थिति में परमेश्वर ही कुछ कर सकते हैं। परमेश्वर ने किया। आश्चर्यकर्मों से उन्होंने विधवा की जरूरतों को पूरा किया (पद 5- 6)। परमेश्वर आह-पाई की जरूरतों को भी पूरा करते हैं-भले ही कम आश्चर्यकर्मों से-वह ऐसा उसकी मेहनत, भूमि की उपज और लोगों के उपहारों के माध्यम से करते हैं।
जीवन हमसे चाहे कई मांगे करे, हम सामर्थ सदा परमेश्वर से पा सकते हैं। अपनी चिंताओं को उन्हें सौंप कर हम जो संभव हो वह करें। और उन्हें वह करने का अवसर दें जो हमें अंततः आश्चर्यचकित कर देगा।
हमारी जरूरतें हमारे भंडार से तो बड़ी हो सकती हैं परन्तु परमेश्वर के उपायों से नहीं।