ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड, में प्रत्येक मई दिवस (मई 1) पर, एक भीड़ प्रातःकाल बसंत को आमंत्रित करने के लिए इकट्ठी होती है l मैग्डालेन संगीत मण्डली प्रातः 6.00 बजे, मैग्डालेन मीनार से गीत गाते हैं l हजारों लोग गीत एवं घंटी की आवाज़ से काली रात के छटने का इंतज़ार करते हैं l

मैं भी अक्सर, इन मनोरंजन करनेवालों की तरह इंतज़ार करती हूँ l मैं प्रार्थना के उत्तर अथवा प्रभु के मार्गदर्शन का इंतज़ार करती हूँ l यद्यपि मुझे नहीं पता कि कब मेरा इंतज़ार करना समाप्त होगा l भजन 130 में भजनकार लिखता है कि वह किसी गहरी पीड़ा में रहते हुए एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है जो सबसे काली रात सी महसूस हो रही है l अपनी परेशानियों में, वह परमेश्वर पर भरोसा करने का चुनाव करता है और जिस तरह पहरुआ अपनी ड्यूटी करते हुए भोर के आने का इंतज़ार करता है, वह भी उसी प्रकार जागता  रहता है l “पहरुए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपने प्राणों से चाहता हूँ” (पद. 6) l

भजनकार को अंधकार से बाहर निकालनेवाला परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का इंतज़ार उसके दुःख के मध्य उसे सहन करने के लिए आशा देती है l सम्पूर्ण वचन में पायी जानेवाली परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर आधारित रहकर, वह आशा उस स्थिति में भी जब प्रथम किरणें अभी तक दिखाई नहीं दी है उसे इंतज़ार करने में उसकी सहायता करती है l 

यदि आप काली रात के मध्य में भी हैं तो भी उत्साहित हो जाएं l सुबह होने वाली है – इस जीवन में अथवा स्वर्ग में! इस बीच, आशा को न त्यागें किन्तु प्रभु के छुटकारे के लिए इंतज़ार करते रहें l वह विशवासयोग्य है l