“किन्तु यदि परमेश्वर का कोई आरंभ और अंत नहीं है, और वह हमेशा से है, तो वह हमें बनाने से पूर्व क्या कर रहा था? वह अपना समय किस तरह व्यतीत कर रहा था?” जब हम परमेश्वर के अनंत स्वभाव के विषय बात करते हैं, कुछ अपरिपक्व सन्डे स्कूल विद्यार्थी उपरोक्त प्रश्न ज़रूर पूछते हैं l मेरा उत्तर होता था कि यह थोड़ा रहस्यमय है l किन्तु हाल ही में मैंने सीखा कि बाइबल हमें इस प्रश्न का उत्तर देती है l
यूहन्ना 17 में जब यीशु अपने पिता से प्रार्थना करता है, वह कहता है “हे पिता, . . . तू ने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझ से प्रेम रखा”(पद.24) l यह वह परमेश्वर है जिसे यीशु ने हम पर प्रगट किया : इससे पूर्व कि वह सृष्टि की रचना करता अथवा उस पर राज्य करता, परमेश्वर एक पिता होकर पवित्र आत्मा के द्वारा अपने पुत्र से प्रेम करता था l जब यीशु का बप्तिस्मा हुआ, परमेश्वर ने अपनी आत्मा को एक कबूतर के रूप में भेजा और बोला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ”(मत्ती 3:17) l परमेश्वर के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी मूल सच्चाई ही यह अप्रत्याशित, जीवनदायी प्रेम है l
यह हमारे परमेश्वर के विषय कितनी खुबसूरत और उत्साहवर्धक सच्चाई है! यह त्रिएक परमेश्वर अर्थात् पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा द्वारा आपस का, स्वेच्छाचारी प्रेम है जो परमेश्वर के स्वभाव को समझने की कुंजी है l समय के आरम्भ से पूर्व परमेश्वर पिता क्या कर रहा था? अपनी आत्मा द्वारा अपने पुत्र से प्रेम कर रहा था l परमेश्वर प्रेम है (1 यूहन्ना 4:8), और यह तस्वीर हमें इसका अर्थ समझने में सहायता करती है l
हम ऐसे परमेश्वर के स्वरुप में बनाए गए हैं जो प्रेमी है और हमसे सम्बन्ध बनाकर रखता है l