Month: मई 2018

आरम्भ से पहले

“किन्तु यदि परमेश्वर का कोई आरंभ और अंत नहीं है, और वह हमेशा से है, तो वह हमें बनाने से पूर्व क्या कर रहा था? वह अपना समय किस तरह व्यतीत कर रहा था?” जब हम परमेश्वर के अनंत स्वभाव के विषय बात करते हैं, कुछ अपरिपक्व सन्डे स्कूल विद्यार्थी उपरोक्त प्रश्न ज़रूर पूछते हैं l मेरा उत्तर होता था कि यह थोड़ा रहस्यमय है l किन्तु हाल ही में मैंने सीखा कि बाइबल हमें इस प्रश्न का उत्तर देती है l

यूहन्ना 17 में जब यीशु अपने पिता से प्रार्थना करता है, वह कहता है “हे पिता, . . . तू ने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझ से प्रेम रखा”(पद.24) l यह वह परमेश्वर है जिसे यीशु ने हम पर प्रगट किया : इससे पूर्व कि वह सृष्टि की रचना करता अथवा उस पर राज्य करता, परमेश्वर एक पिता होकर पवित्र आत्मा के द्वारा अपने पुत्र से प्रेम करता था l जब यीशु का बप्तिस्मा हुआ, परमेश्वर ने अपनी आत्मा को एक कबूतर के रूप में भेजा और बोला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ”(मत्ती 3:17) l परमेश्वर के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी मूल सच्चाई ही यह अप्रत्याशित, जीवनदायी प्रेम है l

यह हमारे परमेश्वर के विषय कितनी खुबसूरत और उत्साहवर्धक सच्चाई है! यह त्रिएक परमेश्वर अर्थात् पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा द्वारा आपस का, स्वेच्छाचारी प्रेम है जो परमेश्वर के स्वभाव को समझने की कुंजी है l समय के आरम्भ से पूर्व परमेश्वर पिता क्या कर रहा था? अपनी आत्मा द्वारा अपने पुत्र से प्रेम कर रहा था l परमेश्वर प्रेम है (1 यूहन्ना 4:8), और यह तस्वीर हमें इसका अर्थ समझने में सहायता करती है l

दृष्टिकोण में अंतर

पिछले 30 वर्षों के अंतराल में मेरे गृह-शहर ने इस वर्ष सबसे अधिक सर्दी के मौसम का अनुभव किया था l घंटों बर्फ को बेलचे से साफ़ करते हुए मेरी बाँहें दर्द करने लगीं l अपने प्रयास को व्यर्थ समझकर जब मैं थकी हुई घर के अन्दर आयी, जलती हुई आग की गर्मी मुझे मिली जिसके चारों-ओर मेरे बच्चे थे l घर के अन्दर से खिड़की से देखने पर मौसम के प्रति मेरा दृष्टिकोण बिलकुल बदला हुआ था l यह न देखकर कि मेरे पास बहुत काम है, मैंने पेड़ों पर जमीं बर्फ की खूबसूरती देखी और किस तरह पूरा परिदृश्य बर्फ से ढका हुआ था l

भजन 73 में आसाप के शब्दों को पढ़ते हुए, मैं उसके समान, बल्कि और अधिक मार्मिक अंतर देखती हूँ l प्रारम्भ में, वह संसार के कार्य करने के तरीके पर दुखित हुआ, अर्थात् किस तरह बुरे लोगों का कुशल होता है l वह भीड़ से अलग जीवन जीने के महत्त्व पर एवं दूसरों की भलाई के लिए जीवन पर शक करता है (पद.13) l किन्तु जब वह परमेश्वर के पवित्रस्थान में प्रवेश करता है, उसका दृष्टिकोण बदल जाता है (पद.16-17) : वह स्मरण करता है कि परमेश्वर संसार के साथ और उसकी समस्याओं के साथ न्याय करेगा, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, कि परमेश्वर के साथ रहना भला है (पद.28) l

जब हम अपने संसार के अनवरत समस्याओं से प्रभावित होते हैं, हम प्रार्थना में परमेश्वर के पवित्रस्थान में प्रवेश करके जीवन-परिवर्तन करनेवाली, दृष्टिकोण- बदलनेवाली सच्चाई की गर्माहट प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् उसका निर्णय हमारे निर्णय से उत्तम है l भले ही हमारी परिस्थितियां न बदलें, हमारी दृष्टिकोण बदल सकती है l

परमेश्वर के लिए अभिलाषित

एक दिन हमारी बेटी हमारे एक वर्ष के नाती के साथ हमारे घर आयी l मैं किसी काम से घर से निकलने ही वाला था, कि कमरे से निकलते ही मेरा नाती रोने लगा l ऐसा दो बार हुआ, और हर बार मैं लौट कर कुछ समय उसके साथ रहा l जब मैं तीसरी बार दरवाजे की ओर बढ़ा, उसके छोटे होंठ फिर हिलने लगे l उस समय मेरी बेटी बोली, “डैड, क्यों न आप इसे अपने साथ ले जाएं?”

कोई भी नाना-नानी आपको बता सकते हैं कि आगे क्या हुआ l मेरा नाती साथ में घूमने गया, केवल इसलिए क्योंकि मैं उसे प्यार करता हूँ l

यह जानना कितना भला है कि परमेश्वर के लिए हमारे हृदयों की अभिलाषाओं से भी परमेश्वर प्रेम करता है l बाइबल हमें भरोसा देती है कि “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उसको हम जान गए और हमें उसका विश्वास है” (1 यूहना 4:16) l परमेश्वर हमसे इसलिए प्रेम नहीं करता कि हमने कुछ किया है अथवा नहीं किया है l उसका प्रेम हमारी योग्यता पर बिलकुल नहीं, किन्तु उसकी भलाई और विश्वासयोग्यता पर आधारित है l जब हमारे चारों-ओर का संसार प्रेम नहीं करता है और कठोर है, हम परमेश्वर के न बदलनेवाले प्रेम को अपनी आशा और शांति का श्रोत मानकर उस पर भरोसा कर सकते हैं l

हमारे स्वर्गिक पिता का हृदय उसके पुत्र और उसकी आत्मा के उपहार के रूप में हमें मिले हैं l यह भरोसा कितना सुखदायक है कि परमेश्वर हमसे प्रेम करता है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं!

प्रत्याशा में प्रतीक्षा

ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड, में प्रत्येक मई दिवस (मई 1) पर, एक भीड़ प्रातःकाल बसंत को आमंत्रित करने के लिए इकट्ठी होती है l मैग्डालेन संगीत मण्डली प्रातः 6.00 बजे, मैग्डालेन मीनार से गीत गाते हैं l हजारों लोग गीत एवं घंटी की आवाज़ से काली रात के छटने का इंतज़ार करते हैं l

मैं भी अक्सर, इन मनोरंजन करनेवालों की तरह इंतज़ार करती हूँ l मैं प्रार्थना के उत्तर अथवा प्रभु के मार्गदर्शन का इंतज़ार करती हूँ l यद्यपि मुझे नहीं पता कि कब मेरा इंतज़ार करना समाप्त होगा l भजन 130 में भजनकार लिखता है कि वह किसी गहरी पीड़ा में रहते हुए एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है जो सबसे काली रात सी महसूस हो रही है l अपनी परेशानियों में, वह परमेश्वर पर भरोसा करने का चुनाव करता है और जिस तरह पहरुआ अपनी ड्यूटी करते हुए भोर के आने का इंतज़ार करता है, वह भी उसी प्रकार जागता  रहता है l “पहरुए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपने प्राणों से चाहता हूँ” (पद. 6) l

भजनकार को अंधकार से बाहर निकालनेवाला परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का इंतज़ार उसके दुःख के मध्य उसे सहन करने के लिए आशा देती है l सम्पूर्ण वचन में पायी जानेवाली परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर आधारित रहकर, वह आशा उस स्थिति में भी जब प्रथम किरणें अभी तक दिखाई नहीं दी है उसे इंतज़ार करने में उसकी सहायता करती है l 

यदि आप काली रात के मध्य में भी हैं तो भी उत्साहित हो जाएं l सुबह होने वाली है – इस जीवन में अथवा स्वर्ग में! इस बीच, आशा को न त्यागें किन्तु प्रभु के छुटकारे के लिए इंतज़ार करते रहें l वह विशवासयोग्य है l