मैं सड़क पर चलते हुए और हाथ में फ़ोन पकड़े हुए किसी पर भी दोष लगा देती हूँ l वे किस तरह उन कारों से बेखबर रह सकते हैं जो उनको टक्कर मार सकते हैं?  क्या वे अपनी सुरक्षा नहीं देखते हैं?  मैंने खुद से बोला है l किन्तु एक दिन, मैं एक गली का रास्ता पार करते समय, इतना अधिक टेक्स्ट मेसेज में डूबी हुई थी, कि मैं अपनी बाँयी ओर से आती हुई कार को देख न सकी l संयोग से मैं बच गयी, चालक ने मुझे देख लिया और तुरन्त गाड़ी रोक दी l किन्तु मैं शर्मिंदा हो गयी l मेरा स्वधर्मी होकर दूसरों में दोष ढूढ़ना मुझे ही परेशान करने लगा l मैंने दूसरों में दोष खोजा था, और अब मैं ही दोषी थी l

मेरा पाखंड वही सोच थी जिसे यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में संबोधित किया था : “हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई कि आँख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा”(मत्ती 7:5) l मेरी आँख में एक बड़ा “लट्ठा” – एक अंध बिंदु थी जिसमें से होकर मैंने अपने कमज़ोर न्याय से दूसरों का न्याय किया l

यीशु ने यह भी कहा, “जिस प्रकार तुम दोष लगते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा” (7:2) l उस दिन उस चालक का चिढ़ा हुए चेहरा याद करके, जिसने मेरे उसकी गाड़ी के सामने आने पर अचानक अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी थी, मुझे भी ताकीद मिलती है कि लोग मुझे अपने फोन में मगन देखकर परेशान होते होंगे l

हममें से कोई पूर्ण नहीं है l किन्तु कभी-कभी मैं भूल जाती हूँ कि जल्दीबाजी में मुझे दूसरों पर दोष नहीं लगाना चाहिए l हम सभों को परमेश्वर का अनुग्रह चाहिए l