“हमें अपना घर छोड़कर क्यों कहीं और जाना पड़ता है?” मेरे बेटे ने पूछा l विशेषकर एक पाँच वर्ष के लड़के को समझाना कठिन है कि घर क्या होता है l हम एक मकान छोड़ रहे थे किन्तु अपना घर नहीं, अर्थात् एक अर्थ में घर वह है जहां हमारे प्रिय लोग रहते हैं l यह वह स्थान है जहां हम एक लम्बी यात्रा के बाद या एक व्यस्त दिन के काम के बाद लौटना पसंद करते हैं l
जब यीशु अपनी मृत्यु के कुछ घंटे पूर्व ऊपर वाले कमरे में था, उसने अपने शिष्यों के कहा, “तुम्हारा मन व्याकुल न हो” (यूहन्ना 14:1) l शिष्य अपने भविष्य के विषय अनिश्चित थे क्योंकि यीशु ने अपनी मृत्यु के विषय भविष्यवाणी की थी l किन्तु यीशु ने उनको अपनी उपस्थिति के विषय निश्चित किया और उनको याद दिलाया कि वे उसे फिर देखेंगे l उसने उनसे कहा, “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं . . . . मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जाता हूँ” (पद.2) l वह स्वर्ग का वर्णन करने के लिए दूसरे शब्दों का उपयोग कर सकता था l हालाँकि, उसने उन शब्दों का चुनाव किया जो एक असुविधाजनक और अपरिचित स्थान नहीं किन्तु ऐसा स्थान होगा जहां हमारा प्रिय, यीशु होगा l
सी.एस. ल्युईस लिखते हैं, “हमारा पिता हमारी यात्रा में हमें कुछ आरामदायक सराय में ले जाकर तरोताज़ा करता है, किन्तु वह नहीं चाहता कि हम उन्हें घर समझें l हम जीवन में आरामदायक सरायों के लिए उसको धन्यवाद दे सकते हैं, किन्तु याद रखें कि हमारा वास्तविक घर स्वर्ग में हैं जहां हम “सदा प्रभु के साथ रहेंगे” (1 थिस्स. 4:17) l
हम प्रभु के साथ सर्वदा रहने की राह देख रहे हैं l