जब मैं अपने पति के साथ कुछ काम से बाहर थी तब फोन पर उस मिठाई की दुकान के विज्ञापन का ईमेल को देख कर हैरान थी, जिसे हमने अभी पार ही किया था। अचानक मेरे पेट से चूहे दौड़ने लगे। मैं हैरान थी कि दुकानदार अपने सामानों से हमें लुभाने के लिए टेक्नालजी का कैसे प्रयोग करते हैं।
विज्ञापन बंद कर मैं सोचने लगी कि किस प्रकार परमेश्वर मुझे अपनी निकटता का अहसास देते हैं। उन्हें हमेशा पता होता है कि मैं कहां हूं और मुझे क्या पसंद है। मैं सोचने लगी कि, क्या मेरा मन परमेश्वर के लिए इतना ही भूखा है जितना मेरा पेट खाने के लिए?
यूहन्ना 6 में, पांच हजार को खिलाने के आश्चर्यकर्म के बाद, चेलों ने बेसब्री से यीशु से सर्वदा “जीवन देने वाली रोटी उन्हें देने को कहा” (पद 33-34)। पद 35 में यीशु ने उत्तर दिया, “जीवन की रोटी…।” कितनी अद्भुत बात है कि यीशु के साथ संबंध होना हमारे रोजमर्रा के जीवन में लगातार पोषण प्रदान कर सकता है!
विज्ञापन का लक्ष्य मेरे मेरे पेट की भूख को जगाना था, परन्तु परमेश्वर का मेरे मन की स्थिति को निरंतर जानना मुझे बाध्य करता है कि मैं समझ सकूं कि मुझे उनकी जरूरत है और वह मन्ना पाऊँ जिसे केवल वो दे सकते हैं।
केवल यीशु ही वह एकमात्र रोटी प्रदान कर सकते हैं जो वास्तव में संतुष्ट करती है।