काँटा मेरी तर्जनी(Index finger) में चुभ गया, जिससे खून निकल आया l मैं जोर से चिल्लाया और फिर कराहते हुए सहज-ज्ञान से अपनी उँगली पीछे खींच ली l किन्तु मुझे चकित होना नहीं चाहिए था : जो कुछ हुआ वह बाग़बानी दास्तान पहने बगैर एक कटीली झाड़ी को काटने का परिणाम था l
मेरी उँगली में दर्द और उसमें से खून बहना की ओर ध्यान देना ज़रूरी था l और पट्टी खोजते समय, मैं अचानक अपने उद्धारकर्ता के विषय सोचने लगा l आखिरकार, सिपाहियों ने यीशु को काँटों का एक मुकुट पहनने को विवश किया (यूहन्ना 19:1-3) l अगर एक काँटे से इतनी तकलीफ़ होती है, मैंने सोचा, तो पूरे काँटों के एक ताज से कितना दर्द हुआ होगा? और यह शारीरिक दुःख का केवल एक छोटा सा भाग था l उसकी पीठ पर कोड़े मारे गए l कीलें उसकी हथेली और पैरों में ठोंके गए l एक भाला उसके पंजर में बेधा गया l
किन्तु यीशु आत्मिक दुःख भी सहा l यशायाह 53 का पद 5 हमसे कहता है, “परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शांति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी l ”जिस “शांति” की बात यशायाह यहाँ करता है वह क्षमा ही है l यीशु ने खुद को बेधने दिया-एक तलवार से, कीलों से, काँटों के ताज से-ताकि हम परमेश्वर की ओर से आत्मिक शांति पा सकें l वह बलिदान, हमारे पक्ष में उसके मरने की इच्छा, पिता के साथ सम्बन्ध बनाने का मार्ग तैयार कर दिया l और वचन कहता है कि उसने ऐसा किया मेरे लिए, आपके लिए l
यीशु ने खुद को बेधने दिया-एक तलवार से, कीलों से, काँटों के ताज से-
ताकि हम परमेश्वर की ओर से आत्मिक शांति पा सकें l