जब काम में एक नयी भूमिका निभाने का अवसर मिला, साइमन ने उसे परमेश्वर की ओर से माना l निर्णय पर प्रार्थना करके और सलाह लेकर, उसने महसूस किया कि परमेश्वर उसे और बड़ी जिम्मेदारी दे रहा है l सब कुछ ठीक था, और उसके बॉस ने उसके कदम को सराहा l तब बातें बिगड़ने लगीं l कुछ सहयोगियों ने उसकी पदोन्नति से अप्रसन्न होकर सहयोग बंद किया l वह यह जिम्मेदारी छोड़ने पर विचार करने लगा l
जब इस्राएली परमेश्वर का घर बनाने यरूशलेम लौटे, शत्रुओं ने उन्हें भयभीत और हतोत्साहित किया (एज्रा 4:4) l पहले तो इस्राएली ठहर गए, किन्तु परमेश्वर द्वारा हाग्गै और जकर्याह नबी के उत्साहवर्धन के बाद निर्माण जारी रहा (4:24-5:2) l
एक बार फिर, शत्रु उनको परेशान करने आए l किन्तु यह जानकार कि “परमेश्वर की दृष्टि उन पर [लगी हुयी है]” (5:5) वे लगे रहे l वे दृढ़ता से परमेश्वर के निर्देशों को थामे हुए और उसपर भरोसा करके हर एक विरोध के बीच निर्माण जारी रखा l निश्चित रूप से, परमेश्वर ने मंदिर निर्माण पूरा होने के लिए फारस के राजा का समर्थन उनकी ओर कर दिया (पद.13-14) l
उसी प्रकार, साइमन ने यह समझने के लिए परमेश्वर की बुद्धिमत्ता मांगी कि उसे वहाँ रहना चाहिए या नयी जगह खोजनी चाहिए l वहाँ रहने हेतु परमेश्वर की इच्छा को जानकार, उसने दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य पर भरोसा किया l समय के साथ, उसने धीरे-धीरे अपने सहयोगियों की स्वीकृति प्राप्त कर लिया l
जब हम परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, जहाँ भी वह हमें रखता है, हम विरोध का सामना कर सकते हैं l उसी समय हमें उसका अनुसरण करना होगा l वह हमारा मार्गदर्शन करते हुए हमें लिए चलेगा l