कलीसिया की एक सभा के दौरान, जिसमें मैंने अपने माता-पिता के साथ भाग लिया, उस सभा के सामान्य अभ्यास के अनुसार प्रभु की प्रार्थना को एकसाथ बोलते हुए हम ने अपने हाथों को पकड़ा। जब मैं एक हाथ से अपनी माता और दूसरे हाथ से अपने पिता को पकड़े हुए थी, तो मेरे मन में एक विचार आया कि मैं सर्वदा उनकी बेटी रहूँगी। यद्यपि मैं पूरी तरह से मेरी मध्य आयु में हूँ, मुझे अभी भी “लियो और फिलिस की सन्तान” बुलाया जा सकता है। मैंने गौर किया कि मैं न केवल उनकी बेटी हूँ, परन्तु मैं सर्वदा परमेश्वर की भी सन्तान रहूँगी।  

प्रेरित पौलुस रोम की कलीसिया के लोगों को समझाना चाहता था कि उनकी पहचान परमेश्वर के परिवार में गोद लिए हुए सदस्यों पर आधारित थी (रोमियों 8:15)। क्योंकि वे आत्मा से जन्में थे (पद 14), अब उन्हें उन बातों का और दास रहने की आवश्यकता नहीं है, जो वास्तव में महत्व नहीं रखती हैं। बल्कि, पवित्र आत्मा के उपहार के द्वारा, वे “परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं” (पद 17)।

उन लोगों के लिए जो मसीह के पीछे चलते हैं, यह क्या अन्तर पैदा करता है? बिलकुल साधारण सी बात, यह हर प्रकार का अन्तर पैदा करता है! परमेश्वर की सन्तान के रूप में हमारी पहचान हमें बुनियाद उपलब्ध करवाती है और हम स्वयं और संसार को कैसे देखते हैं, इसकी दृष्टि प्रदान करती है। उदाहरण के लिए यह जानना कि हम परमेश्वर के परिवार का हिस्सा हैं हमें, जब हम उसके पीछे चलते हैं, अपने आराम से बाहर आने में सहायता करता है। हम दूसरों की सहमति खोजने से भी स्वतन्त्र हो जाते हैं।

आज, क्यों न हम इस बात पर मनन करें की परमेश्वर की सन्तान होने का क्या अर्थ है?