जब मैं अपने सप्ताह भर के आने-जाने के समय में एक बार ट्रेन के स्टेशन पर प्रतीक्षा कर रहा था, तो कुछ नकारात्मक विचारों से मेरा मस्तिष्क भर गया, जैसे की यात्री ट्रेन में चढ़ने के लिए लाईन में खड़े हैं-ऋण के तनाव में, मुझे कहे गए बुरे शब्द, निसहायता में या परिवार के किसी सदस्य के साथ हाल ही में हुए अन्याय का सामना करते हुए। जब तक ट्रेन आई, मैं बहुत ही विचलित मन:स्थिति में थी।

ट्रेन में, एक दूसरा विचार मेरे मन में आया: परमेश्वर को एक नोट लिखूँ और उसे मेरे दुःख के बारे में बताऊँ। जल्द ही जब मैंने अपने विचारों को अपने जनरल में लिख डाला, तो उसके बाद मैंने अपना फोन निकाला और उसमें स्तुति के गीतों को सुनना शुरू कर दिया। और कुछ ही समय में बुरी मन:स्थिति पूरी तरह से बदल गई। 

मुझे नहीं पता था कि मैं भजनकार 94 के नमूने का पालन कर रही थी। भजनकार ने पहले अपनी शिकायतों को उंडेल डाला: “हे पृथ्वी के न्यायी, उठ; और घमण्डियों को बदला दे… कुकर्मियों के विरुद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? मेरी ओर से अनर्थकारियों का कौन सामना करेगा?” (भजन संहिता 94:2, 16)। जब उसने परमेश्वर से बात की तो उसने विधवाओं और अनाथों के साथ हुए अन्याय के बारे में कुछ बचाकर नहीं रखा। एकबार जब उसने परमेश्वर को अपना दुःख बता दिया, तो वह भजन स्तुति की ओर चला गया: “परन्तु यहोवा मेरा गढ़, और मेरा परमेश्‍वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है” (पद 22)।

परमेश्वर हमें अपने दुःख उसे बताने के लिए बुलाता है। वह हमारे भय, उदासी और निस्सहायता को स्तुति में बदल सकता है।