मुझे खुशी होती है जब एक परोपकारी बेघर बच्चों के लिए एक अनाथालय का निर्माण करता है। मैं और भी उत्साहित हो जाता हूँ जब वह और अधिक देता है और उन बच्चों में से एक को गोद ले लेता है। अधिकत्तर अनाथ बच्चे बस एक संरक्षक को पाकर ही प्रसन्न होंगे। परन्तु यह जानना कि सहायता करने वाला केवल मेरी सहायता करने से संतुष्ट नहीं है बल्कि वह मुझे चाहताभी है l इससे कैसा अह्सास होता है?

यदि आप परमेश्वर की सन्तान हैं यह आप पहले से ही जानते हैं, क्योंकि यह आपके साथ घटित हुआ है। हम शिकायत नहीं कर सकते यदि परमेश्वर ने हम से बस प्रेम किया होता और अपना पुत्र भेज दिया होता ताकि हम “नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन पाएं” (यूहन्ना 3:16)। यह हमारे लिए पर्याप्त होता। परन्तु परमेश्वर के लिए नहीं। उसने “अपने पुत्र को हमें छुड़ाने के लिए भेजा” परन्तु इसका अन्त यहीं नहीं हुआ, “परन्तु हमें पुत्रों के रूप में गोद लिया गया है” (गलातियों 4:4-5)।

प्रेरित पौलुस हमें “पुत्र” बताता है, क्योंकि उसके समय में पुत्रों के लिए पिता की मीरास प्राप्त करना सामान्य था। उसकी मुख्य बात यह है कि जो कोई यीशु पर विश्वास करता है, चाहे वह पुरुष या महिला हो, मीरास के समान और समस्त अधिकारों के साथ परमेश्वर का “पुत्र” बन जाता है (पद 7)।

परमेश्वर बस आपको बचाना ही नहीं चाहता है। वह तो आपको चाहता है। उसने आपको अपने परिवार में गोद ले लिया है, आपको अपना नाम दिया है (प्रकाशितवाक्य 3:12), और गर्व के साथ आपको अपनी सन्तान कहता है। सम्भवतः आपको इससे अधिक प्रेम नहीं किया जा सकता, या इससे अधिक कोई और महत्वपूर्ण व्यक्ति के द्वारा आप बस परमेश्वर के द्वारा आशिषित ही नहीं हैं। आप परमेश्वर की सन्तान हैं। आपका पिता आपसे प्रेम करता है।