यह मुझे सर्वदा ही आश्चर्यचकित करता है कि शान्ति-सामर्थी और समझाई न जा सकने योग्य शान्ति (फिलिप्पियों 4:7)-हमारे गहनतम दुःख में भी हमारे हृदयों को आपूर्त कर सकती है। मैंने यह हाल ही में अपने) पिता की मेमोरियल सर्विस में अनुभव किया। सांत्वना देने वाले लोगों की लम्बी कतार में अपनी हाई स्कूल के एक मित्र को देखकर मुझे बहुत आराम मिला। बिना कुछ कहे उसने मुझे जोर से गले लगा लिया। उस संकट भरे दिन के दुःख में उसकी मूक समझ ने मुझे लबालब भर दिया, इस सशक्त याद दिलाने वाले अहसास ने मुझे याद दिलाया कि मैं उतनी अकेली भी नहीं थी, जितना मुझे लग रहा था।
जैसे भजन संहिता 16 में दाऊद उल्लेख करता है, कि जिस प्रकार की शान्ति और आनन्द परमेश्वर हमारे जीवनों में ले कर आता है यह कठिन समयों में पीड़ा को भावहीन ढंग (से) दबाने के लिए एक चुनाव के द्वारा नहीं आया है; परन्तु यह तो एक उपहार के समान है, जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते, परन्तु हम इसे तभी अनुभव कर सकते हैं, जब हम अपने भले परमेश्वर में शरण लेते हैं (पद 1-2) ।
हम उस पीड़ा को जवाब दे सकते हैं जो मृत्यु हमें पथभ्रष्ट करने के द्वारा ले कर आती है, शायद यह सोचकर कि इन अन्य “ईश्वरों” की ओर मुड़ जाना पीड़ा को दूर रखेगा। परन्तु जल्द ही या थोड़े समय बाद हम पाएँगे कि दुःख से बचना तो बस हमारे लिए और गहन पीड़ा ही ले कर आता है (पद 4) ।
या हम परमेश्वर की ओर मुड़ सकते हैं, यह भरोसा करते हुए कि जब हम यह नहीं समझ सकते, कि जो जीवन वह हमें पहले से ही दे चुका है-इसकी पीड़ा में भी-वह खुबसूरत और भला है (पद 6-8) । और हम अपने आप को उसकी प्रेम से भरी बाँहों के अधीन कर सकते हैं जो हमारी पीड़ा से आराम के साथ हमें एक शान्ति और आनन्द में ले जाती हैं, जिसे मृत्यु भी कभी कम नहीं कर सकती है (पद 11) ।
परमेश्वर का प्रेम हमारी पीड़ा से हमें शान्ति और आनन्द (में) ले चलता है और उसमें हमें थामे रखता है।