जब मेरे मित्र डेविड की पत्नी को अल्जाइमर(मानसिक रोग) हुआ तो परिणामस्वरूप इसने उसे चिड़चिड़ा बना दिया। उनकी देखभाल करने के लिए उसे सेवानिवृत्त होना पड़ा और रोग के बढ़ने पर उसे अपनी पत्नी की और देखभाल की जरूरत पड़ी।

“मैं परमेश्वर से बहुत नाराज़ था” उसने मुझे बताया।  “परन्तु जितना मैंने इसके लिए प्रार्थना की, उतना ही उन्होंने मुझे मेरा हृदय दिखाया, कि मैं अपने वैवाहिक सम्बन्ध में कितना स्वार्थी रहा था। ” जब उसने अंगीकार किया तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, “वह दस वर्षों से बीमार है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे चीज़ों को भिन्न रूप से देखने में सहायता की है। अब जो कुछ मैं करता हूँ वह उसके लिए मेरे प्रेम के कारण करता हूँ, मैं वह यीशु के लिए भी करता हूँ।  उसकी देखभाल करना मेरे जीवन का सौभाग्य बन गया है।”

कई बार परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर हमें वह न देने के द्वारा देते हैं, जो हम चाहते हैं, परन्तु वह हमें बदलने की चुनौती देने के द्वारा उत्तर देते हैं। जब नबी योना क्रोधित था, क्योंकि परमेश्वर ने दुष्ट नगर नीनवे को विनाश से बचा लिया था, गर्म सूर्य से उसे बचाने के लिए परमेश्वर ने एक पौधा उगाया (योना 4:6) । फिर उसने इसे सुखा दिया। जब योना ने शिकायत की, परमेश्वर ने उत्तर दिया, “तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?” (पद 7-9) । योना ने बस अपने ऊपर ध्यान दिया, और इसी की जिद्द की। परन्तु परमेश्वर ने उसे दूसरों का ध्यान देने और उनपर दया करने की चुनौती दी।

कई बार परमेश्वर हमें सीखने और बढ़ने में हमारी सहायता करने के लिए हमारी प्रार्थनाओं का प्रयोग करता है। यही वह बदलाव है जिसका हम खुले दिल से स्वागत कर सकते हैं, क्योंकि वह अपने प्रेम के द्वारा हमें बदलना चाहता है।