चर्च में रविवार को जिस छोटी लड़की ने सीढ़ियों के लिए मार्ग निर्देशन किया, वह बहुत सुन्दर, साहसी और आत्मनिर्भर थी। एक के बाद एक (वह छोटी लड़की)-जो दो वर्षों से बड़ी दिखाई (नहीं) दे रही थी-ने नीचे जाने के लिए कदम बढ़ाए। सीढ़ियों से नीचे जाना उसका उद्देश्य था और उसने इसे पूरा किया। मैं मन ही मन मुस्कुराया जब मैंने इस निडर बच्ची की साहसी आत्मनिर्भरता पर ध्यान किया। बच्ची डरी हुई नहीं थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी देखभाल करने वाली माँ की निगरानी करने वाली आँखें और उसका प्रेम भरा हाथ उसकी सहायता के लिए फैला हुआ था। यह उपयुक्त रूप से प्रभु की उसके बच्चों की मुस्तैदी से सहायता करने की तस्वीर प्रस्तुत करता है, जब वे जीवन की भिन्न-भिन्न प्रकार की अनिश्चितताओं के साथ अपने मार्ग पर चलते हैं।

पवित्रशास्त्र के आज के पद में “दो तरफ़ा” सन्दर्भ हैं। अपने पुरातन लोगों को भयभीत या हतोत्साहित न होने की चेतावनी देने के बाद प्रभु ने उन्हें बताया, “अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूँगा।” (यशायाह 41:10)। अनेक चिन्तित और भयभीत बच्चे माता-पिता की सामर्थ के द्वारा सम्भाले गए हैं l यहाँ परमेश्वर की सामर्थ देखने को मिलती है। दूसरी तरफ के सन्दर्भ में भी यह प्रभु ही है जो अपने लोगों की सुरक्षा को कायम रखने के लिए कार्य करता है। “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दाहिना हाथ पकड़कर कहूँगा” (पद 13)। जबकि जीवन की परिस्थितियाँ और समय बदलते हैं, परन्तु प्रभु नहीं बदलता है। हमें डरने की आवश्यकता नहीं है (पद 10) क्योंकि प्रभु हमें अपनी प्रतिज्ञा और उन शब्दों के साथ आश्वासन देता है, जो हमें सुनने की अविलम्ब ज़रूरत है : “मत डर मैं तेरी सहायता करूँगा (पद 10,13) ।