मेरा जीवन प्राय: उन्माद और जल्दबाज़ी से भरा रहता है। मैं एक जिम्मेदारी से दूसरी जिम्मेदारी की ओर भागती हुयी, अपने मार्ग में ही फोन करने और अपने कभी न समाप्त होने वाले कामों की सूची में चीज़ें देखती रहती हूँ। एक रविवार को बहुत जल्दबाज़ी में मैं अपने घर के पीछे के आंगन में गिर गई। मेरा फोन अन्दर था और मेरे बच्चे और पति भी अन्दर ही थे। पहले तो मैंने एक या दो मिनट के लिए बैठे रहने का सोचा, परन्तु उस अबाधित स्थिरता में मैंने कई बातों पर ध्यान दिया, जिन्होंने मुझे वहीं लम्बे समय तक रुकने के लिए आमन्त्रित किया। मैं हेमरॉक के धीरे धीरे हिलने, लैवेंडर के फूल पर मधुमक्खी के भिनभिनाने और मेरे सिर के ऊपर पक्षी के पंख फड़फड़ाने को सुन सकती थी। आकाश गहरा नीला था और हवा से बादल उड़ रहे थे।
जो कुछ परमेश्वर ने बनाया है उसको देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए। जब मैं अपनी आँखों और कानों में अनेक अद्भुत चीज़ें देखने के लिए पर्याप्त समय के लिए ठहरी, तो मैं परमेश्वर की रचनात्मक सामर्थ के लिए धन्यवाद के साथ उसकी आराधना करने के लिए उत्साहित हो गई। भजन संहिता 104 का लेखक भी इसी समान परमेश्वर की हस्तकला के द्वारा नम्र हो गया था, “तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है” (पद 13) ।
भागदौड़ के जीवन में एक शान्त क्षण हमें परमेश्वर की रचनात्मक सामर्थ को याद दिला सकता है। वह अपनी सामर्थ और नम्रता के प्रमाणों से हमें घेरे रहता है; उसी ने ऊँचे पर्वत और पक्षियों के लिए डालियाँ बनाई हैं। “इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है (पद 24)।
हम परमेश्वर की रचनात्मक सामर्थ के द्वारा घिरे हुए हैं।