मेरे घर के पास के एक नगर में फिका नामक एक कॉफ़ीहाउस है। यह एक स्वीडिश शब्द है जिसका अर्थ कॉफ़ी और पेस्ट्री के साथ, परिवार, सहकर्मियों या मित्रों के साथ थोड़ी देर के लिए अवसर निकलना है । मैं स्वीडन से नहीं हूँ, फिर भी फिका की विचारधारा एक बात का उल्लेख करती है, जो मुझे यीशु के बारे में बहुत पसन्द है-दूसरों के साथ खाने और आराम करने के लिए समय निकालना ।   

विद्वान बताते हैं कि यीशु का भोजन अनियमित नहीं था। धर्मशास्त्री मार्क ग्लेनविले उन्हें इस्राएल के पर्वों और पुराना नियम में त्यौहार मनाने का एक “(आनंददायक ‘दूसरा अवसर)’” कहते हैं। मेज पर यीशु ने वह जीवन जिया, जिसकी इच्छा परमेश्वर ने इस्राएल के लिए की थी : “सम्पूर्ण संसार के लिए आनन्द, ख़ुशी, और न्याय का केन्द्र।”

5,000 को खिलाने से प्रभु भोज तक-यहाँ तक कि पुनरुत्थान के बाद दो विश्वासियों के साथ भोजन (लूका 24:30)-यीशु की मेज़ की सेवा हमें हमारी निरन्तर प्रयास करते रहने को रोकने और उस पर निर्भर होने के लिए आमन्त्रित करती है। वास्तव में, यीशु के साथ खाने तक उन दो विश्वासियों ने नहीं पहचाना कि वह प्रभु थे। “जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा। तब उनकी आँखें जीवित मसीह के प्रति खुल गईं” (पद 30-31) ।

हालही में फिका में एक मित्र के साथ बैठे गर्म चाकलेट और रोल्स का आनन्द लेते हुए, हम ने एक-दूसरे को यीशु की बातें करते हुए पाया। वह जीवन की रोटी है। प्रभु करे कि हम उसकी मेज़ पर जाएँ और उसे और अधिकता से प्राप्त करें।