अनेक वर्ष पूर्व एक महाविद्यालय के सभापति ने एक सलाह दी कि सभी विद्यार्थी उनके साथ एक शाम के लिए बिजली बचाने में शामिल हों। यद्यपि विद्यार्थी सहमत हो गए, बहुत हिचकिचाहट के साथ उन्होंने अपने सेलफोन एक ओर रख दिए और चैपल(प्रार्थनाघर) में चले गए। अगले एक घण्टे तक वे संगीत और प्रार्थना की सभा में ख़ामोशी के साथ बैठे रहे। उसके बाद एक सहभागी ने “शान्त हो जाने के एक अद्भुत सुअवसर. . .एक ऐसा मौका जहाँ आप समस्त अनचाही आवाज़ों से अलग हो सकते हैं” के अनुभव के बारे में बताया। 

कई बार अनचाही आवाज़ों से बचना बहुत ही कठिन होता है। हमारे बाह्य और आन्तरिक संसारों, दोनों का कोलाहल बहरा कर देने वाला हो सकता है। परन्तु जब हम शान्त रहना सीख जाते हैं, तो हम भजनकार के शान्त रहने के याद दिलाने की आवश्यकता को समझना आरम्भ कर देते हैं, ताकि हम परमेश्वर को जान सकें (भजन संहिता 46:10) । 1 राजा 19 में, हम यह भी पाते हैं कि नबी एल्लियाह ने प्रभु की खोज की तो उसने उन्हें प्रचण्ड आँधी में, भूकम्प में, या अग्नि में नहीं पाया (पद 9-13) । परन्तु एल्लियाह ने परमेश्वर के दबे हुए धीमे स्वर को सुना (पद 12) । 

त्योहारों के दौरान अतिरिक्त आवाजों का होना निश्चित है। जब परिवार और मित्र एकत्र होते हैं, तो बातचीत, अतिरिक्त भोजन, हंसी के ठाहकों और प्रेम की मधुर अभिव्यक्ति का एक समय अवश्य होता है। परन्तु जब हम ख़ामोशी के साथ अपने हृदयों को खोलते हैं, तो परमेश्वर के साथ वाले उस समय को हम और भी मधुर पाते हैं। एल्लियाह के समान उस शान्ति में हमारी परमेश्वर के साथ भेंट होना अधिक सम्भव होता है। और अनेक बार, यदि हम सुनें, तो हम भी उस धीमे स्वर को सुन पाएँगे।