जब मेरा नाती जे छोटा था उसके माता-पिता ने उसे उसके जन्मदिन पर एक नया टी-शर्ट दिया l उसने उसे उसी समय पहन लिया और उसे पहन कर गर्व से पूरे दिन घूमता रहा l
दूसरे दिन जब वह सुबह के समय उसी शर्ट में था, उसके पिता ने उससे पूछा, “जे, क्या तुम इस शर्ट से खुश हो?”
“कल की तरह नहीं,” जे ने उत्तर दिया l
सामग्री के अभिग्रहण से यही परेशानी है : जीवन की अच्छी वस्तुएं भी हमें गहरा, स्थायी आनंद नहीं दे सकते जिसकी हम प्रबल इच्छा रखते हैं l यद्यपि हमारे पास बहुत सम्पति हो सकती है, फिर भी हम नाखुश रहेंगे l
यह संसार वस्तुओं के अभिग्रहण के द्वारा आनंद को पेश करती है : नए कपड़े, नयी गाड़ी, एक आधुनिक फ़ोन या घड़ी l किन्तु कोई भी भौतिक अभिग्रहण हमें उतना आनंदित नहीं कर सकता जैसे बीते हुए कल में उससे मिला था l यह इसलिए है क्योंकि हम परमेश्वर के लिए बनाए गए थे और उससे कम से काम नहीं बनेगा l
एक दिन, जब यीशु उपवास कर रहा था और भूख से शिथिल हो गया, शैतान उसके निकट आया और रोटी बनाकर उसकी भूख को मिटाने के लिए उसकी परीक्षा की l यीशु ने उसका सामना व्यवस्थाविवरण 8:3 उद्धृत करते हुए किया, “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुहँ से निकलते हैं” (मत्ती 4:4) l
यीशु का यह मतलब नहीं था कि हम केवल रोटी ही पर जीवित रहें l वह एक सच्चाई का आरम्भ कर रहा है : “हम आत्मिक प्राणी हैं और इसलिए हम केवल भौतिक वस्तुओं पर जीवित नहीं रह सकते हैं l
वास्तविक संतुष्टि परमेश्वर और उसके बहुतायत से मिलती है l
परमेश्वर, मुझे सिखाएं, आज आपके बहुतायत पर आधारित जीवन जीने का क्या अर्थ है? जो कुछ मुझे चाहिए वह सब आपके पास है!