Month: अप्रैल 2019

अनापेक्षित विजेता

शायद 2018 शरद् ओलंपिक में सबसे अद्भुत, मंत्रमुग्ध करने वाला क्षण वह था जब चेक गणराज्य की विश्व विजेता स्नोबोर्डेर(बर्फ की ढाल पर पट्टी पर खड़े होकर फिसलने वाली) एस्टर लेडेका ने बिलकुल भिन्न स्पोर्ट्[खेल-कूद] : स्कीइंग में जीत हासिल की l और उसने प्रथम-स्थान स्वर्ण पदक जीत लिया यद्यपि उसके पास स्कीइंग का अनभिलाषित 26वाँ स्थान  था - उपलब्धि जिसे बुनियादी रूप से असंभव माना जाता है l

आश्चर्यजनक रूप से, लेडेका महिलाओं का सूपर-G दौड़ - एक प्रतियोगिता जिसमें ढलान पर स्की करने के साथ स्लालोम कोर्स(सर्पिलाकार रास्ते पर स्की दौड़) सम्मिलित होता है - के लिए अहर्ता प्राप्त कर ली l वह उधार ली हुयी स्की द्वारा एक सेकंड के 0.1 भाग से जीत गयी, वह उतनी ही चकित थी जितना मीडिया और दूसरे प्रतियोगी थे जिन्होंने किसी सर्वोत्तम स्की करनेवाला के विजेता होने का अनुमान लगाया था l

संसार इसी प्रकार कार्य करता है l हम विजेताओं के निरंतर जीतने का आंकलन लगाते हैं जबकि दूसरे सभी हारेंगे l उस समय भी वह एक झटका था, जब शिष्यों ने यीशु को कहते हुए सुना “धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना [कितना] कठिन है” मत्ती 19:२३) l यीशु ने सबकुछ उल्टा कर दिया l किस तरह धनवान (एक विजेता) होना रुकावट हो सकता है? प्रत्यक्ष रूप से, यदि हम उन चीजों में भरोसा करते हैं जो हमारे पास हैं (जो हम कर सकते हैं, जो हम हैं), तब यह न केवल कठिन परन्तु वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा करना असंभव बना देता है l

परमेश्वर के राज्य में हमारे नियम कानून नहीं चलते हैं l यीशु कहते हैं, “बहुत से जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, पहले होंगे” (पद.30) l और, चाहे आप पहले हैं या अंतिम, हम सबकुछ केवल अनुग्रह से प्राप्त करते हैं-परमेश्वर की कृपा से जिसके लिए हमने कीमत नहीं चुकाई है l

परिवर्तन संभव है

शनिवार की दोपहर, हमारी कलीसिया के युवा समूह के कुछ सदस्य एक दूसरे से फिलिप्पियों 2:3-4 पर आधारित कुछ कठिन प्रश्न पूछने के लिए इकठ्ठा हुए l “विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो l हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिंता करे l” कुछ एक कठिन प्रश्न जो शामिल थे : आप कितनी बार दूसरों में रूचि लेते हैं? क्या कोई आपको दीन या घमण्डी कहेगा? क्यों?

जब मैं सुन रही थी, मैं उनके ईमानदार उत्तर से उत्साहित हुयी l ये कीशोर सहमत थे कि अपनी गलतियों को स्वीकार करना सरल नहीं है, किन्तु इसे परिवर्तित करना कठिन है, अथवा-इस सम्बन्ध में-परिवर्तन की इच्छा l जिस प्रकार खेद के साथ एक किशोर बोला, “स्वार्थ मेरे खून में है l”

दूसरों की सहायता के लिए खुद पर से ध्यान हटाने की इच्छा हमारे अन्दर निवास करनेवाले यीशु की आत्मा द्वारा ही संभव है l इसी कारण से पौलुस ने फिलिप्पी की कलीसिया को उन बातों पर विचार करने की लिए याद दिलाया जो परमेश्वर ने किया था और उनके लिए संभव बना दिया था l उसने उनको दयालुता से गोद लिया था, उनको अपने प्रेम द्वारा आराम दिया था, और उनकी सहायता के लिए अपनी आत्मा दी थी (फिलिप्पियों 2:1-2) l किस तरह वे-और हम-इस अनुग्रह का प्रतिउत्तर दीनता से कुछ कम के द्वारा दे सकते हैं?

वाकई, हमारे परिवर्तन का कारण परमेश्वर ही है, और केवल वही हमें बदल सकता है l क्योंकि वह हमें “अपना प्रेमपूर्ण उद्देश्य पूरा करने के लिए . . . सद् इच्छा भी उत्पन्न करता और उसके अनुसार कार्य करने का बल भी प्रदान करता है” (पद.13 Hindi C.L.), हम खुद पर कम केन्द्रित होकर दीनता से दूसरों की सेवा कर सकते हैं l

असहनीय में भी जीवित

अनुभव प्रोजेक्ट, इक्कीसवीं सदी की एक सबसे बड़ी ऑनलाइन समुदाय, एक समय ऐसी साईट थी जिसपर बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी गहरी पीड़ादायक प्रत्यक्ष अनुभवों को साझा किया l मर्मभेदी कहानियों को पढ़ते समय, मैंने विचार किया कि हमारे हृदय कितने बेसब्री से ऐसे किसी व्यक्ति के लिए लालायित होते हैं जो हमारा दर्द समझ ले l

उत्पत्ति में, एक युवा दासी की कहानी दर्शाती है कि यह उपहार कितना अधिक जीवनदायक हो सकता है l 

हाजिरा एक दासी लड़की थी जिसे संभवतः मिस्र के फिरौन ने अब्राम को दी थी (देखें उत्पत्ति 12:16; 6:1) l जब अब्राम की पत्नी सारै गर्भवती न हो सकी, उसने अब्राम को हाजिरा से एक संतान उत्पन्न करने का आग्रह किया-उस काल का एक तकलीफ़देह अपितु सामान्य चलन l किन्तु जब हाजिरा गर्भवती हो गयी, तनाव बढ़ गया, जबतक कि हाजिरा सारै के दुर्व्यवहार से जंगल में न भाग गयी (16:1-6) l

किन्तु हाजिरा की कठिन परिस्थिति-एक कठोर, निर्मम मरुभूमि में गर्भवती और अकेले- दिव्य आँखों से भाग न सकी l एक स्वर्गिक दूत द्वारा हाजिरा को प्रोत्साहित करने के बाद (पद.7-12), उसने घोषणा की, “अत्ताएलरोई-तू सर्वदर्शी ईश्वर है” (पद.13) l

हाजिरा खाली तथ्यों से परे देखनेवाले परमेश्वर की स्तुति कर रही थी l वही परमेश्वर यीशु में प्रगट हुआ, जिसने, भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान . . . व्याकुल और भटके हुए से थे” (मत्ती 9:36) l  हाजिरा का सामना एक ऐसे परमेश्वर से हुआ था जो समझ सकता था l

जिस परमेश्वर ने हाजिरा की पीड़ा को देखा और समझा हमारी भी समझता है (इब्रानियों 4:15-16) l स्वर्गिक परानुभूति का अनुभव असहनीय को थोड़ा अधिक सहनीय बनने में सहायता कर सकता है l

नूतन हृदय चाहिए?

समाचार भयानक था l

मेरे पिता के सीने में दर्द हो रहा था, इसलिए डॉक्टर ने उनके हृदय की जांच-पड़ताल करने  के लिए जांच का आदेश दिया l परिणाम? तीन रक्तवाहनियों में अवरोध(blockages) l

फरवरी 14 के लिए तिहरा-बाईपास सर्जरी निर्धारित किया गया l यद्यपि मेरे पिता घबराए हुए थे, उन्होंने उस दिन को एक आशापूर्ण संकेत की तरह देखा l “वैलेंटाइन डे के लिए मुझे एक नया हृदय मिलनेवाला है!” और उन्हें मिला! सर्जरी बिलकुल सफल रही, और उनके पीड़ादायक हृदय में जीवन-दायक रक्त प्रवाह पुनःस्थापित हो गया-उनका “नया” हृदय l

मेरे पिता की सर्जरी ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर हमें भी नया जीवन देता है l इसलिए कि पाप हमारे आत्मिक “रक्तवाहनियों को अवरुद्ध कर देता है-परमेश्वर के साथ सम्बन्ध जोड़ने की हमारी योग्यता-हमें उनको साफ़ करने के लिए आत्मिक “सर्जरी” की ज़रूरत है l

यहेजकेल 36:26 में परमेश्वर अपने लोगों के लिए इसी की प्रतिज्ञा करता है l वह इस्राएलियों को आश्वास्त करता है, “मैं तुम को नया मन दूँगा. . . और तुम्हारी देह में से पत्धर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूँगा l” उसने यह भी प्रतिज्ञा किया, “मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता . . . से शुद्ध करूँगा” (पद.25) और “अपना आत्मा तुम्हारे भीतर [दूँगा](पद.27) l ऐसे लोगों को जो आशाहीन हो गए हे, परमेश्वर ने उनके जीवनों को पुनः नूतन बनाने वाले के रूप में उनको एक नयी शुरुआत की प्रतिज्ञा दी l

वह प्रतिज्ञा आखिरकार यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा पूरी हुयी l जब हम उसपर विश्वास करते हैं, हम एक नया आत्मिक हृदय पाते हैं, ऐसा हृदय जो हमारे पाप और निराशा से शुद्ध हो चुका है l मसीह की आत्मा से भरपूर, परमेश्वर की आत्मिक जीवनशक्ति के साथ हमारा नया हृदय धड़कता है, कि “उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें” (रोमियों 6:4 हिंदी C.L.) l

सतर्क रहें!

मैं गर्म दक्षिणी शहरों में बड़ी हुयी, इसलिए जब मैं उत्तर में रहने लगी, मुझे लम्बे, बर्फीले महीनों के दौरान गाड़ी सुरक्षित चलाना सीखने में काफी समय लगा l मेरे पहले कठिन सर्दियों में, तीन बार बर्फ के टीले में फंस गयी! किन्तु कई वर्षों के अभ्यास के बाद, मैं सर्द स्थितियों में गाड़ी चलाने में आराम महसूस करने लगी l वास्तव में, मैं थोड़ा अधिक सहज महसूस करती थी l मैंने सावधान रहना छोड़ दिया l और ठीक उसी समय मैं बर्फ के गोले को मारते हुए सड़क के किनारे टेलीफोन पोल से टकरा गयी!

शुक्र है, किसी को चोट नहीं लगी, किन्तु उस दिन मैंने कुछ महत्वपूर्ण सीखा l मैंने जान लिया कि निश्चिन्त महसूस करना कितना खतरनाक हो सकता है l सचेत होने के स्थान पर, मैं “ऑटोपायलट (चेतनाशून्य)” हो गयी थी l

हमें अपने आत्मिक जीवन में भी उसी प्रकार की सतर्कता का अभ्यास करना होगा l पतरस विश्वासियों को चेतावनी देता है कि जीवन में बेध्यानी से न चले, परन्तु “सचेत रहें” (1 पतरस 5:8) l शैतान क्रियाशीलता से हमें नाश करने का प्रयास कर रहा है, और इसलिए हमें भी क्रियाशील रहना है, परीक्षा का सामना करना है और अपने विश्वास में दृढ़ रहना है (पद.9) l हालाँकि यह ऐसा कुछ नहीं है जो हमें अपनी ताकत से करना है l परमेश्वर हमारे दुःख में हमारे साथ रहने की और, आखिरकार, हमें “सिद्ध और स्थिर और बलवंत”(पद.10) बनाने की प्रतिज्ञा करता है l उसकी सामर्थ्य से, हम बुराई का सामना करने और उसका अनुसरण करने में सचेत और सावधान रहना सीखते है l