जून, 2019 | हमारी प्रतिदिन की रोटी Hindi Our Daily Bread - Part 4

Month: जून 2019

यष्टि-चित्र(stick-figure) से सीख

मेरी एक सहेली – ठीक है, वह मेरी परामशदाता थी – ने एक कागज़ पर यष्टि चित्र(stick-figure) बनाया l उसने उसे निजी “व्यक्तित्व” संबोधित किया l उसके बाद उसने उस चित्र के चारोंओर रेखा खिंची, करीब आधा इंच बड़ा, और उसे “सार्वजनिक” व्यक्तित्व संबोधित किया l इन दोनों चित्रों में अंतर, निजी व्यक्तित्व और सार्वजनिक व्यक्तित्व, उस सीमा को दर्शाता है जिसमें हमारे पास ईमानदारी है l

मैं उनके पाठ पर विचार करके आश्चर्यचकित हुयी, क्या मैं सार्वजनिक रूप से वह व्यक्ति हूँ जो मैं व्यक्तिगत तौर से हूँ? क्या मैं ईमानदार हूँ?

पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को पत्र लिखा, यीशु के समान बनने के लिए अपनी शिक्षा में प्रेम और अनुशासन को मिला दिया l जब वह इस पत्री(2 कुरिन्थियों) के अंत में पहुँचा, उसने दोष लगानेवालों को जिन्होनें उसकी सत्यता को चुनौती दी थी यह कहते हुए संबोधित किया कि वह अपने पत्रियों में दृढ़ था परन्तु व्यक्तित्व में निर्बल (10:10) l इन आलोचकों ने अपने श्रोताओं से धन प्राप्त करने के लिए व्यवसायिक भाषणबाज़ी का उपयोग किया l जबकि पौलुस के पास शैक्षणिक कौशल था, वह निष्कपटता और सादगी से बोलता था l “मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली वातें नहीं,” उसने पहले की एक पत्री में लिखा था, “परन्तु [उसमें] आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था” (1 कुरिन्थियों 2:4) l बाद की उसकी पत्री ने उसकी ईमानदारी को उजागर किया : “जो ऐसा कहता है, वह यह समझ रखे कि जैसे पीठ पीछे पत्रियों में हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे सामने हमारे काम भी होंगे” (2 कुरिन्थियों 10:11) l

पौलुस ने अपने को सार्वजनिक रूप में और व्यक्तिगत रूप में एक सा दर्शाया l हमारे विषय क्या है?

हमें जाननेवाला उद्धारकर्ता

मेरे बेटे ने पीछे की सीट से पूछा, “पापा, क्या समय है?” “अभी 5.30 बजा है” मैं जानता था वह आगे क्या कहेगा l “नहीं, अभी 5.28 बजा है!” मैंने उसके चेहरे पर चमक देखी l ठीक है! उसकी चमकती मुस्कराहट बोल पड़ी l मैं भी आनंदित हुआ – ऐसा आनंद जो एक माता-पिता को अपने बच्चे को जानने से मिलती है l

किसी सचेत माता-पिता की तरह, मैं अपने बच्चों को जानता हूँ l मुझे मालूम है कि मेरे उनको जगाने पर वे किस प्रकार उत्तर देंगे l मैं जानता हूँ उनको दोपहर के भोजन में क्या चाहिए l मैं उनके अनगणित रुचियों, इच्छाओं, और पसंद को जानता हूँ l

परन्तु उन सबके लिए, मैं उनको पूर्ण रूप से नहीं जान पाउँगा, अन्दर से बाहर, जिस तरह प्रभु हमें जानता है l

हम यूहन्ना 1 में घनिष्ट ज्ञान के प्रकार की झलक पाते हैं जो यीशु का अपने लोगों के लिए है l जैसे नतनएल, जिसे फिलिप्पुस ने यीशु से मुलाकात करने के लिए आग्रह किया था, यीशु की ओर गया l यीशु ने स्पष्ट किया, “देखो यह सचमुच इस्राएली है : इसमें कपट नहीं है” (पद.47) l आश्चर्यचकित होकर नतनएल ने उत्तर दिया, “ तू मुझे कैसे जानता है?” कुछ सहस्यमय तरीके से, यीशु ने उत्तर दिया कि उसने उसे अंजीर के पेड़ तले देखा था (पद.48) l

शायद हम नहीं जान पाएंगे क्यों यीशु ने इस ख़ास वर्णन को साझा किया, परन्तु ऐसा महसूस होता है नतनएल ने किया! अभिभूत होकर, उसने उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है” (पद.49) l

यीशु हम में से हर एक को इसी प्रकार जानता है : बहुत निकट से, पूर्ण रूप से, और सिद्धता से – जैसे हम चाहते है कि हम जाने जाएँ l और वे हमें सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करता है – केवल हमें अपने अनुगामियों के रूप में नहीं, परन्तु अपने अतिप्रिय मित्रों की तरह (यूहन्ना 15:15) l

चोट पहुँचाने वाले शब्द

“खाल और हड्डी, खाल और हड्डी,” उस लड़के ने उपहास किया l “छड़ी,” एक अन्य ने उसके साथ स्वर मिलाया l जवाब में मैं भी बोल सकती थी “छड़ी और पत्थर से मेरी हड्डी टूट सकती है, किन्तु शब्दों से मुझे चोट कभी नहीं लगेगी l” परन्तु छोटी लड़की होते हुए भी, मैं जानती थी कि लोकप्रिय कविता सच नहीं थी l कठोर, विचारहीन शब्दों से चोट ज़रूर लगी – कभी-कभी बहुत अधिक, ये ऐसे घाव छोड़ गए जो बहुत गहरे थे और पत्थर या छड़ी की चोट से कहीं अधिक समय तक रहनेवाले घाव l

हन्ना विचारहीन शब्दों के डंक को ज़रूर जानती थी l उसका पति, एल्काना, उसे प्यार करता था परन्तु वह संतानहीन थी, जबकि उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्ना, के पास अनेक बच्चे थे l  एक ऐसी संस्कृति में जहाँ स्त्री का महत्त्व संतान होने पर आधारित था, पनिन्ना संतानहीन हन्ना को अत्यंत चिढ़ाकर” उसकी पीड़ा को और कष्टप्रद बना देती थी l वह उसे कुढ़ाती रही जबतक कि हन्ना रो नहीं दी और भोजन न कर सकी (1 शमूएल 1:6-7) l

और एल्काना शायद अच्छा ही सोचता था, परन्तु उसका विचारहीन उत्तर, “हे हन्ना, तू क्यों रोटी है? . . . क्या तेरे लिए मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूँ” (पद.8) फिर भी कष्टदायक था l

हन्ना के समान, हममें से अनेक कष्टकर शब्दों का परिणाम सहते रहते हैं l और हममें से कुछ एक अपने ही शब्दों द्वारा घोर प्रहार करके और दूसरों को चोट पहुंचाकर कदाचित अपने ही घावों के प्रति प्रतिकार किये हैं l परन्तु हम सब सामर्थ्य और चंगाई के लिए अपने प्रेमी और दयालु परमेश्वर की पास जा सकते हैं (भजन 27:5, 12-14) l वह प्रेम और अनुग्रहकारी शब्द बोलकर प्यार सहित हमारे लिए आनंदित होता है l

स्पष्ट संवाद

एशिया में यात्रा करते वक्त, मेरा आई पैड/ipad (जिसमें मेरी पठन सामग्री और कई कार्य के दस्तावेज़ थे) अचानक काम करना बंद कर दिया, एक स्थिति जिसे “मृत्यु का काला स्क्रीन/the black screen of death” कहा जाता है l सहायता चाहते हुए, मुझे एक कंप्यूटर की दूकान मिली और मुझे एक और समस्या का सामना करना पड़ा – मुझे चीनी भाषा नहीं आती थी और दूकान का तकनीशियन अंग्रेजी भाषा नहीं बोलता था l समाधान? उसने एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम खोलकर चीनी भाषा में टाइप किया, किन्तु मैं उसे अंग्रेजी में पढ़ सकता था l प्रक्रिया विपरीत हो गयी जब मैंने अंग्रेजी में उत्तर दिया और उसने चीनी भाषा में पढ़ लिया l इस सॉफ्टवेयर ने हमें स्पष्ट संवाद करने की अनुमति दी, दूसरी भाषाओं में भी l

कभी-कभी, मैं अपने स्वर्गिक पिता से प्रार्थना करते समय उससे संवाद करने और स्पष्ट रूप से अपने दिल की बात बताने में खुद को अयोग्य महसूस करता हूँ – और मैं अकेला नहीं हूँ l हममें से अनेक प्रार्थना के साथ संघर्ष करते हैं l परन्तु प्रेरित पौलुस ने लिखा, “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है : क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो ब्यान से बाहर हैं, हमारे लिए विनती करता है; और मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है l रोमियों 8:26-27

पवित्र आत्मा का दान कितना अद्भुत है! किसी भी कंप्यूटर कार्यक्रम से बेहतर l वह पिता के उद्देश्यों के सामंजस्य के साथ मेरे विचारों और इच्छाओं को संप्रेषित करता है l पवित्र आत्मा का कार्य प्रार्थना के कार्य को संभव बनाता है!

सिर्फ एक यायावर(gypsy) लड़का

“ओ, यह तो सिर्फ एक यायावर(gypsy) लड़का है,” किसी ने असंतोष से फुसफुसाया जब 1877 में एक आराधना के दौरान रॉडनी स्मिथ मसीह को स्वीकार करने के लिए चर्च के सामने आया l किसी ने असाक्षर यायावर माता-पिता के इस किशोर पुत्र के विषय अधिक कुछ नहीं सोचा था l फिर भी, रॉडनी ने इन आवाजों की ओर ध्यान नहीं दिया l वह निश्चित था कि उसके जीवन के लिए परमेश्वर के पास एक योजना थी इसलिए उसने अपने लिए एक बाइबल और एक इंग्लिश शब्दकोष खरीद लिया और खुद को पढ़ना लिखना सिखाया l एक बार उसने कहा, “यीशु के पास जाने का मार्ग कैंब्रिज, हार्वर्ड, येल, या दूसरे कवियों के द्वारा नहीं है l वह . . . एक पुरानी शैली की पहाड़ी है जिसे कलवरी कहते हैं l” सभी असमानताओं के विरुद्ध रॉडनी एक प्रचारक बना जिसे परमेश्वर ने इंगलैंड(UK) और अमरीका(US) में अनेक लोगों को यीशु के पास लाने में उपयोग किया l

पतरस भी सिर्फ एक साधारण व्यक्ति था – धार्मिक रब्बियों के विद्यालयों(सम्प्रदाय) में प्रशिक्षित नहीं था (प्रेरितों 4:13), गलील का मात्र एक मछुआ – जब यीशु ने चार शब्दों के द्वारा उसे बुलाया : “मेरे पीछे चले आओ” (मत्ती 4:19) l फिर भी वही पतरस, जिसने जीवन में अपने परवरिश और पराजयों के अनुभव के बावजूद, बाद में दावे से कहा कि यीशु का अनुसरण करनेवाले “एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा [हैं]” (1 पतरस 2:9) l

यीशु के द्वारा सभी लोग – चाहे कैसी भी उनकी शिक्षा, परवरिश, लिंग, या नस्ल/जाति हो – परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बन सकते हैं और उसके द्वारा उपयोग हो सकते हैं l परमेश्वर की “निज प्रजा” बनना उन सब के लिए है जो यीशु में विश्वास करते हैं l