Month: जुलाई 2019

कैद में विश्वासयोग्य

1948 में एक दिन बहुत सुबह के समय जब दरवाजे की घंटी बजी हारालेन पोपोव (एक प्रोटेस्टेंट पादरी) को यह पता नहीं था कि उसका जीवन कौन सा मोड़ लेने वाला था l बगैर किसी चेतावनी के, बल्गेरियाई पुलिस ने हारालेन को उसके विश्वास के कारण जेल में डाल दिया l वह अगले तेरह वर्षों तक जेल में रहा, और सामर्थ्य और साहस के लिए प्रार्थना करता रहा l भयंकर बर्ताव के बाद भी, उसे मालूम था कि परमेश्वर उसके साथ है, और उसने अपने सह कैदियों के साथ यीशु का सुसमाचार बांटा – और बहुतों ने विश्वास किया l

उत्पत्ति 27 से इस वर्णन में, यूसुफ को पता नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला था जब उसके क्रोधित भाइयों ने बेरहमी से उसे व्यपारियों के हाथ बेच दिया जिन्होनें उसे मिस्र ले जाकर एक मिस्री अधिकारी, पोतीपर के हाथ बेच दिया l उसने खुद को एक ऐसी संस्कृति में पाया जहाँ लोग हजारों देवताओं में विश्वास करते थे l स्थिति को और बदतर बनाने के लिए, पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ को पथभ्रष्ट करना चाहा l यूसुफ के बार-बार इनकार करने पर, उसने उसपर झूठे दोष लगाकर, उसे कैदखाने में भेजवा दिया (39:16-20) l फिर भी परमेश्वर ने उसको नहीं त्यागा l वह केवल उसके साथ ही नहीं रहा, परन्तु “जो काम वह करता [था] उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता [था]” और “उस पर करुणा की” और “बंदीगृह के दारोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई” (39:3,21) l

उस डर की कल्पना करें जो यूसुफ ने अनुभव किया l परन्तु वह विश्वासयोग्य रहा और अपनी ईमानदारी बरकरार रखी l परमेश्वर यूसुफ की कठिन यात्रा में उसके साथ था और उसके लिए एक मास्टर प्लान(मुख्य योजना) रखा था l उसके मन में आपके लिए भी एक योजना है l हिम्मत बांधें और विश्वास में चलें, यह भरोसा करते हुए कि वह देखता है और वह जानता है l

कभी भी अति विलंबित नहीं

मेरे सास के हृदयाघात के बाद के चिंताजनक क्षणों में, वह त्वरित चिकित्सीय देखभाल प्राप्त करने में भाग्यशाली थी l बाद में, उनके डॉक्टर ने मुझे से कहा कि गंभीर हृदयाघात रोगियों का इलाज पंद्रह मिनट के भीतर होने पर 33 फीसदी लोग बच जाते हैं l परन्तु इस समय सीमा के बाहर इलाज पानेवाले केवल 5 फीसदी ही बच पाते हैं l

याईर की गंभीर रूप से बीमार बेटी (जिसे त्वरित चिकित्सीय देखभाल की ज़रूरत थी) को चंगाई देने जा रहे यीशु ने अकल्पनीय कार्य किया : वह ठहर गया (मरकुस 5:30) l उसने रुककर जानना चाहा किसने उसे छुआ था, और तब उस स्त्री से कोमलता से बात की l आप कल्पना कर सकते हैं कि याईर क्या सोच रहा था : इस के लिए समय नहीं है, मेरी बेटी मरनेवाली है! और तब, उसका सबसे बड़ा डर सच साबित हुआ – यीशु ने बहुत देर कर दिया था और उसकी बेटी की मृत्यु हो गयी (पद.35) l

परन्तु यीशु याईर की ओर मुड़कर उससे उत्साह के शब्द कहे : “मत डर; किवल विश्वास रख” (पद. 36) l तब, तमाशबीनों के उपहास को शांति से अनदेखा करके, मसीह ने याईर की बेटी से बोला और वह जीवित हो गयी! उसने प्रगट किया कि वह कभी भी अति विलंबित नहीं हो सकता है l जो वह कर सकता है और जब वह करता है समय उसको सीमित नहीं कर सकता है l

कितनी बार हम भी याईर की तरह अनुभव करते हैं, जो हम करने की आशा रखते थे उसमें परमेश्वर ने यूँ ही विलम्ब कर दिया l किन्तु परमेश्वर के साथ, ऐसी कोई बात नहीं है l वह हमारे जीवनों में अपना अच्छा और करुणामय कार्य पूरी करने में कभी देर नहीं करता है l

सीखाने में क्रियाशील

मेरा छह साल का बेटा, ओवेन, एक बोर्ड-गेम पाकर उत्तेजित हो गया l परन्तु आधे घंटे तक नियम पढ़ने के बाद, वह निराश हो गया l वह समझ नहीं पा रहा था खेल कैसे खेला जाता थे l खेल जाननेवाला उसके मित्र द्वारा समझाए जाने पर, आख़िरकार ओवेन अपने उपहार का आनंद लिया l

उनको खेलते हुए देखकर, मैंने स्मरण किया कि एक अनुभवी शिक्षक होने पर कुछ नया सीखना अधिक सरल होता है l हमारे सीखते समय, निर्देशों को पढ़ना सहायक होता है, परन्तु समझाने वाले एक मित्र के होने से एक बड़ा अंतर होता है l

प्रेरित पौलुस भी इसे समझता था l तीतुस को लिखते हुए कि किस प्रकार विश्वास में उसकी कलीसिया को उन्नति करने में वह सहायता कर सकता था, पौलुस ने अनुभवी विश्वासियों के महत्व पर बल दिया जो मसीही विशवास का नमूना बन सकते थे l अवश्य ही “दुरुस्त सिद्धांत” सिखाना महत्वपूर्ण था, परन्तु यह केवल बताने के विषय नहीं था – उसे व्यवहारिक रूप से जीना भी ज़रूरी था l पौलुस ने लिखा कि बूढ़े पुरुष और स्त्रियाँ संयमी, पवित्र, और प्रेमी हों (तीतुस 2:2-5) l उसने कहा, “सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना” (पद.7) l

मैं ठोस शिक्षा के लिए धन्यवादित हूँ, परन्तु मैं उन अनेक लोगों के लिए भी धन्यवादित हूँ जो क्रियाशील शिक्षक रहे हैं l उन्होंने खुद के जीवन से मुझे दिखाया है कि मसीह का शिष्य कैसा होता है और मेरे लिए उस पथ पर चलना उन्होंने सरल बना दिया है l

वह कौन है?

अपना सुहागरात(honeymoon) मनाने के बाद अपने घर लौटते समय, हम दोनों पति-पत्नी एअरपोर्ट पर अपना सामान चेक-इन करने के लिए इंतज़ार करने लगे l मैंने उसे कुहनी से थोड़ा धक्का मारकर थोड़ी दूर खड़े एक व्यक्ति की ओर इशारा किया l

मेरे पति ने कनखी मार कर कहा l “वह कौन है?”

मैंने उत्तेजित होकर जोर से उस अभिनेता की सबसे अधिक उल्लेखनीय भूमिका बतायी, तब उनके निकट जाकर उनसे हमारे साथ एक तस्वीर खिंचवाने का आग्रह किया l बीस साल के बाद भी, मैं उस दिन की कहानी साझा करना चाहती हूँ कि मैं एक फ़िल्म अभिनेता से मिली थी l

एक लोकप्रिय अभिनेता को मान्यता देना एक बात है, परन्तु एक और अधिक विशेष है जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से जानकार धन्यवादित हूँ l “वह प्रतापी राजा कौन है?” (भजन 24:8) l भजनकार दाऊद सर्वशक्तिमान प्रभु को सृष्टिकर्ता, संभालनेवाला, और सभी पर राज्य करनेवाला दर्शाता है, “पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है, जगत और उस में निवास करनेवाले भी l क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रों के ऊपर दृढ़ करके रखी, और महानदों के ऊपर स्थिर किया है” (पद.1-2) l विस्मयाभिभूत आश्चर्य में, दाऊद परमेश्वर के सभी के ऊपर, फिर भी घनिष्टता से सुलभ घोषित करता है (पद.3-4) l हम उसे जान सकते हैं, उसके द्वारा सशक्त किये जाते हैं, और जब हम उसके लिए जीवन जीते हैं, हमारे पक्ष में लड़ने के लिए उसपर भरोसा कर सकते हैं (पद.8) l

परमेश्वर हमें उसे एकमात्र उत्कृष्ट दूसरों के साथ साझा करने योग्य घोषित करने के सुअवसर देता है l जब हम उसके चरित्र को प्रतिबिंबित करते हैं, जो उसे नहीं पहचानते हैं के पास पूछने के और भी कारण है , “वह कौन है?” दाऊद की तरह, हम भी विस्मयाभिभूत आश्चर्य के साथ प्रभु की ओर इशारा करके उसकी कहानी बता सकते है!