एक युवक चर्च से घर पहुंचकर बड़ी उत्तेजना के साथ बोला कि आज का पाठ एक युवा के विषय था जो “पूरे दिन इधर उधर घूमा और मछली पकड़ा l” निसन्देह, वह, उस छोटे लड़के के विषय सोच रहा था जिसने यीशु को रोटी और मछली दी थी l

यीशु पूरे दिन भीड़ को शिक्षा दे रहा था, और शिष्यों की राय थी कि वह उन्हें रोटी खरीदने के लिए गाँव में भेज दे l यीशु ने उत्तर दिया, “तुम ही इन्हें खाने को दो” (मत्ती 14:16) l शिष्य घबरा गए क्योंकि 5,000 से भी अधिक लोगों को भोजन खिलाने की बात थी!

आप बाकी कहानी जानते होंगे : एक लड़के ने अपना भोजन दिया – पांच छोटी रोटियाँ और दो मछली – और यीशु ने उससे भीड़ को खिला दिया (पद.13-21) l एक विचार के अनुसार लड़के ने उदारता दिखाकर सरलता से भीड़ में अन्य लोगों को अपना भोजन साझा करने को प्रेरित किया, परन्तु मत्ती चाहता है कि हम समझें कि वह एक आश्चर्यक्रम था, और यह कहानी चारों सुसमाचारों में मिलती है l

हम क्या सीख सकते हैं? परिवार, पड़ोसी, मित्रगन, सहयोगी, और दूसरे हमारे चारों ओर विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं में होते हैं l क्या हम उनको अपनी योग्यता से बड़े लोगों के पास भेज दें? बिलकुल, कुछ लोगों की ज़रूरतें हमारी सहायता करने की योग्यता से अधिक हैं, लेकिन हमेशा नहीं l जो भी आपके पास है – सीने से लगाना, एक दयालु शब्द, सुनने वाला कान, छोटी प्रार्थना, कुछ बुद्धिमत्ता जो आपके पास है – यीशु को दे दें और देखें वह क्या कर सकता है l