बचपन में, बेंजामिन वेस्ट अपनी बहन की तस्वीर बनाने की कोशिश की, परन्तु तस्वीर बिगाड़ने में सफल हो गया l उसकी माँ ने उसकी रचना देखी, फिर उसके माथे को चूमकर बोली, “क्यों, यह तो सैली है!” वह बाद में कहनेवाला था कि उस चुम्बन ने उसे एक कलाकार बना दिया – और वह महान अमेरिकी चित्रकार बनने वाला था l प्रोत्साहन एक शक्तिशाल बात है!

पेंट करना सीखनेवाले बच्चे की तरह, पौलुस के पास उसकी आरंभिक सेवा में अधिक विश्वसनीयता नहीं थी, परन्तु बरनबास ने उसकी बुलाहट की पुष्टि की l यह बरनबास का प्रोत्साहन ही था जिसके कारण कलीसिया ने शाऊल को सहविश्वासी स्वीकार कर लिया (प्रेरितों 9:27) l बरनबास अन्ताकिया की मूल कलीसिया को भी प्रोत्साहित करके, उसे प्रेरितों के काम में एक सबसे प्रभावशाली कलीसिया बनने में सहायता की (11:22-23) l और बरनबास के साथ-साथ पौलुस का प्रोत्साहन ही था, जिससे यरूशलेम की कलीसिया ने गैरयहूदी विश्वासियों को मसीही के रूप में अपना लिया (15:19) l इसलिए, अनेक प्रकार से, आरंभिक कलीसिया की कहानी वास्तव में प्रोत्साहन की कहानी है l

यह हमारे जीवनों पर भी लागू होना चाहिए l हमारे विचार में प्रोत्साहन मात्र किसी को कुछ अच्छा कहना हो सकता है l परन्तु यदि हम उस दिशा में सोचते हैं, हम उसकी स्थायी शक्ति को पहचान नहीं पाते हैं l यह एक तरीका है जिससे परमेश्वर हमारे व्यक्तिगत जीवनों के साथ-साथ कलीसिया के जीवन को भी आकार देता है l

हम उन क्षणों के लिए धन्यवाद दें जब हम प्रोत्साहित किये गए और इसे दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करें l