2017 में, अमरीका में हरिकेन हार्वे (प्रचंड तूफ़ान) के बाद लोगों की सहायता करने का अवसर हममें से एक समूह को ह्यूस्टन पहुँचा दिया l हमारा लक्ष्य तूफ़ान से प्रभावित लोगों को उत्साहित करना था l इस प्रक्रिया में, हमारे खुद के विश्वास ने चुनौती का सामना करके  मजबूत हुआ जब हम उनके साथ उनके क्षतिग्रस्त चर्च इमारतों और घरों में खड़े थे l

हार्वे (प्रचंड तूफ़ान) के परिणामस्वरूप अनेक लोगों द्वारा दर्शाया गया दीप्तिमान विश्वास ही वह है जिसे हम हबक्कूक द्वारा ई.पू. सातवीं शताब्दी के अंत के नबूवत में पाते हैं l नबी ने नबूवत की कि कठिन समय आने वाला था(1:5-2:1); स्थिति बेहतर होने से पूर्व बदतर हो जाएगी l नबूवत का अंत उसे पृथ्वी की होनेवाली हानि पर विचार करते हुए पाटा है और शब्द चाहे तीन गुना दिखाई देता है : “चाहे अंजीर के वृक्षों में फूल न लगे . . .  जलपाई के वृक्ष से केवल धोखा पाया जाए . . . , भेड़शालाओं में भेड़-बकरियां न रहें, और न थानों में गाय बैल हों” (3:17) l

किस प्रकार हम अपने को अकल्पनीय हानि जैसे अस्वस्थता या बेरोजगारी, किसी प्रिय की मृत्यु, या एक प्राकृतिक आपदा का सामना करते हुए पाते हैं? हबक्कूक का“ कठिन समय का गीत” हमें परमेश्वर, जो आज, कल, और सर्वदा हमारे उद्धार का श्रोत (पद.18), सामर्थ्य, और स्थिरता (पद.19), उसमें निश्चित विश्वास और भरोसा रखने का आह्वान देता है l आखिर में, जो उसपर भरोसा करते हैं कभी निराश नहीं होंगे l