उसका नाम सारालिन था, और स्कूल में साथ पढ़ते समय मैं उसका दीवाना था l उसकी मुस्कराहट अद्भुत थी l मुझे नहीं मालूम कि वह उसके प्रति मेरी दीवानगी के विषय जानती थी, परन्तु मुझे शक है कि वह जानती थी l स्नातक की पढ़ाई के बाद मुझे नहीं मालूम वह कहाँ चली गयी l हम दोनों का जीवन अलग- अलग रास्ते पर चल दिया जैसा कि जीवनों के साथ होता है l

मैं कुछ ऑनलाइन मंचों(forum) के माध्यम से अपने स्नातक कक्षा के साथ सम्बन्ध रखता हूँ, और मैं सारलिन की मृत्यु के विषय सुनकर अत्यंत दुखित हुआ l मैं सोचता रहा कि इन बीते वर्षों में उसके जीवन ने कौन सी दिशा ली थी l मेरी उम्र बढ़ने के साथ ऐसी बातें और भी अधिक हो रही हैं, मित्रों और परिवार को खोने का अनुभव l परन्तु हममें से अनेक इसके विषय बात नहीं करना चाहते हैं l

जबकि हम अभी भी दुखित होते हैं, पौलुस जिस आशा के विषय बात करता है वह यह है कि मृत्यु अंत नहीं है (1 कुरिन्थियों 15:54-55) l कुछ है जो उसके बाद आने वाला है, एक अन्य शब्द : पुनरुत्थान l पौलुस उस आशा को मसीह के पुनरुत्थान की सच्चाई में स्थापित करता है (पद.12), और कहता है “और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है, और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है” (पद.14) l यदि विश्वासी के रूप में हमारी आशा केवल इसी संसार तक सिमित है, तो यह केवल दुर्गति है (पद.19) l

“जो मसीह में सो गए हैं” (पद.18) हम उन्हें एक दिन फिर देखेंगे – दादा-दादी, नाना-नानी और माता-पिता, मित्र और पड़ोसी, या शायद स्कूल के मित्र जिनसे हम प्रेम करते थे l

मृत्यु के पास अंतिम अधिकार नहीं है l पुनरुत्थान के पास है l