पॉल, एपोसल ऑफ़ क्राइस्ट(Paul, Apostle of Christ)) फिल्म कलीसिया के आरंभिक दिनों के सताव पर एक निर्भीक अवलोकन है l फिल्म के बाल कलाकार भी प्रगट करते हैं कि यीशु का अनुसरण करना कितना खतरनाक था l नेकनामियों में सूचीबद्ध इन भूमिकाओं पर विचार करें : स्त्री जिसे पीटा गया; पुरुष जिसे पीटा गया; मसीही पीड़ित व्यक्ति 1, 2, और 3 l

मसीह के साथ पहचान अक्सर एक ऊंची कीमत मांगती है l और संसार के अधिकतर भाग में, यीशु का अनुसरण करना अभी भी खतरनाक है l आज कलीसिया में अनेक लोग उस प्रकार के सताव से सम्बंधित हो सकते हैं l हालाँकि, हममें से कुछ एक, समय से पूर्व ही “सताए हुए” महसूस कर सकते हैं – जब भी हमारे विश्वास का उपहास होता है हम क्रोधित होते हैं या हम शंकित होते हैं कि हमारे विश्वास के कारण हमें पदोन्नति नहीं दी गयी l

जाहिर है, सामाजिक प्रतिष्ठा का त्याग और हमारे जीवन का बलिदान करने के बीच भारी अंतर है l वास्तविक रूप से, हालांकि, स्व-हित, वित्तीय स्थिरता और सामाजिक स्वीकृति हमेशा गहन मानव प्रेरक रही है l हम इसे यीशु के कुछ आरंभिक विस्वासियों के कार्यों में देखते हैं l प्रेरित युहन्ना बताता है कि, यीशु के क्रूसीकरण से कुछ दिन पहले, यद्यपि अनेक इस्राएली अब तक उसका तिरस्कार कर रहे थे (युहन्ना 12:37), बहुत से “अधिकारियों में से बहुतों ने उस पर विस्वास किया” (पद.42) l हालाँकि, “[वे] प्रगट रूप में नहीं मानते थे . . . क्योंकि मनुष्यों की ओर से प्रशंसा उनको परमेश्वर की ओर से प्रशंसा की अपेक्षा अधिक प्रिय लगती थी” (पद. 42-43) l

आज भी हम मसीह में अपने विश्वास को छुपाए रखने के लिए सामाजिक तनाव का सामना करते हैं (और उससे भी अधिक) l कीमत कुछ भी हो, हम ऐसे समाज के रूप में एक साथ खड़े रहें जो मनुष्य की प्रशंसा से अधिक परमेश्वर के अनुमोदन के खोजी हों l